समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
देख लो शासन वालों ने, क्या गज़ब कर डाला है, बन्द रखा है शिवालों को, खोल दिया मधुशाला है। लॉकडाउन के पीरियड में, जब सारे कैद घरों में तो दवा न मिलती है लेकिन, खुल गया दर हाला है।। ©पंकज प्रियम
बेहतरीन सर 👌
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