Wednesday, May 20, 2020

837. सफ़ेद इश्क़

नमन साहित्योदय
चित्रधारित रचना
ग़ज़ल
बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12
क़ाफ़िया- आएं
रदीफ़- सनम

नज़र से नज़र को पिलाएं सनम।
चलो उम्र को फिर घटाएं सनम,

चले तुम गये थे  कहाँ छोड़ के,
चलो दिल से दिल को मिलाएं सनम।

अभी जो मिले हो तो जी भर मिलो
गुज़र जो गया वक्त लाएं सनम।

गुजर जो गयी उम्र तो क्या हुआ?
जवां दिल चलो फिर बनाएं सनम।

समंदर  किनारे  लहर   मौज  में,
चलो वक्त कुछ तो बिताएं सनम।

पकड़   हाथ मेरा   रहो  साथ तो,
जमाने को जीवन दिखाएं सनम।

चले जो गये छोड़ तन्हा सभी,
उदासी को मिलकर घटाएं सनम।

बुढ़ापे ने घेरा मगर दिल जवां,
चलो मिल फ़साना सुनाएं सनम।

जवानी फ़क़त चार दिन की यहाँ,
मुहब्बत यूहीं मिल लुटाएं सनम।

सफ़र आखिरी में न फिसले कभी
कदम से कदम को मिलाएं सनम।

सभी को गुजरना इसी वक्त में
प्रियम को कहानी बताएं सनम।

©पंकज प्रियम

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