समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
कौन कहता है कि भारत में मंदी है, कौन कहता है कोरोना तालाबंदी है। जरा देख लो दारू की दुकानों में- भीड़ की तस्वीर कितनी गंदी है।। ©पंकज प्रियम
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