नमन साहित्योदय
दिन शुक्रवार
तिथि-22 मई
ग़ज़ल सृजन
क़ाफ़िया- आता
रदीफ़- है
बहर-1222*4
*दिले जज़्बात*
नज़र में डूबकर तेरे, कदम जब लड़खड़ाता है,
अधर को चूम जो लेता, मुझे तब होश आता है।
नज़र के पास जब होती, बड़ा बेताब दिल होता,
चली तू दूर जब जाती, हृदय पल-पल बुलाता है।
तुम्हारी याद जब आती, मुझे बैचेन कर जाती,
तुम्हारे संग जो गुजरा, वो लम्हा याद आता है।
पवन से पूछता हरदम, बता तू हाल दिलबर का,
भला वो बिन मेरे कैसे, वहाँ हर पल बिताता है।
गगन में मेघ के जरिये, तुम्हें पाती सदा भेजूँ,
मगर पढ़के मेरे ख़त को, जलद आँसू बहाता है।
तुम्हारा अक्स मैं अक्सर, चमकते चाँद में देखूँ,
मुहब्बत देखकर मेरी, ख़ुदा भी रश्क़ खाता है।
दिली जज़्बात जो कहता, कलम उसको ग़ज़ल कहती-
जरा देखूँ यहाँ कैसे,.........प्रियम रिश्ता निभाता है।
© पंकज भूषण पाठक प्रियम
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