Friday, May 1, 2020

823. देख लो

ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
क़ाफ़िया-अल
रदीफ़ -कर देख लो

मौज सागर की हूँ मेरे सँग मचल कर देख लो,
वक्त की करवट नहीं जो तुम बदल कर देख लो।

सुरमई साँसों की सरगम इश्क़ इक संगीत है
प्यार की इस तान में तुम आज ढल कर देख लो।

है बड़ी फिसलन की राहें सोचकर रखना कदम,
इश्क की राहों मे चाहो तो फिसल कर देख लो।

आग का दरिया मुहब्बत यार सब हैं बोलते,
धार उसके डूब तुम मझधार जल कर देख लो।

डर अगर लगता तुम्हें तो छोड़ दो यह खेल तुम,
गर समझ लो प्रश्न तुम तो आज हल कर देख लो।

छू लिया है जिस्म सबने, रूह को जो छू सके,
प्रेम के तुम उस डगर में यार चल कर देख लो।

तुम रुहानी इश्क़ कर लो फिर प्रियम से बोलना,
आगे हद से प्यार मे पहले निकल कर देख लो।।

"©पंकज प्रियम

3 comments:

Riya sharma said...

Wah; kya kavita likhte ho pankaj ji very nice poem.

साहित्योदय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्य-कला संगम said...

धन्यवाद जी

दिगम्बर नासवा said...

अच्छी गज़ल है ... लाजवाब अशआर ...