Friday, May 8, 2020

832. धर्म का ठप्पा

धर्म

लिखूंगा अगर तो कहोगे की लिखता है,
हिंदुस्तान में क्या हमारा ही धर्म सस्ता है?

जब चाहा जैसे तुमने उसको काट लिया,
चंद वोटों की ख़ातिर सबको बांट दिया!
नफऱत के बीज तो खुद बोती है सरकार,
और कुछ लिखो तो बोल पड़े लिखता है।
हिंदुस्तान में क्या हमारा ही धर्म सस्ता है?

हर गली हर नुक्कड़ धर्म का लगा ठप्पा,
एक बेचारे को खा गया समझ गोलगप्पा!
औरों की तरह उसने भी तो नाम लिखा!
क्या केवल इसमें ही तुझे धर्म दिखता है?
हिंदुस्तान में क्या हमारा ही धर्म सस्ता है?

सेक्युलरिज्म का क्या यही होता है फंडा,
हिन्दू गर हिन्दू कह दे तुम चला दो डंडा!
फिर क्यूँ नौकरी नामांकन का हर पन्ना,
हर किसी का चीख-चीख धर्म लिखता है?
हिंदुस्तान में क्या हमारा ही धर्म सस्ता है?

माना कि गंगा-जमुनी की तहज़ीब हमारी,
फिर क्यों दिखती यह ओछी नीति तुम्हारी?
संविधान ने हर किसी को है अधिकार दिया,
सबके जैसे उसने लिखा तो घाव रिसता है?
हिंदुस्तान में क्या हमारा ही धर्म सस्ता है?

मत करो यह भेदभाव, ज़हर न ऐसे घोलो,
क्या ख़ता थी उसकी आख़िर कुछ तो बोलो!
धर्म लिखना दोष अगर है सबको तुम रोको,
क्या धर्म का केवल सेलेक्टिव रिश्ता है?
हिंदुस्तान में क्या हमारा ही धर्म सस्ता है?
©पंकज प्रियम

शर्मनाक कार्रवाई- जमशेदपुर में इस फलवाले पर सिर्फ इसलिए कार्रवाई हो गयी कि उसने दुकान का नाम हिन्दू फल दुकान रख लिया था। जबकि यह कोई अपराध नहीं। सभी लोग अपने धर्म के अनुसार दुकान और होतकों का नाम रखते हैं लेकिन कार्रवाई सिर्फ बेचारे इस पर हुई। राजनीतिक पहल के बाद प्रशासन ने हाथ पीछे कर लिया।

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