Monday, May 25, 2020

840.बेवफ़ा

बेवफ़ा/ग़ज़ल
हम वफ़ा करते रहे तुम,     बेवफ़ा क्यूँ हो गये?
इश्क़ की पूजा अगर की, तुम ख़ुदा क्यूँ हो गये?

मानकर तुझको ख़ुदा मैं, पूजने हरदम लगा,
बाखुदा हम हो गये तुम,   नाख़ुदा क्यूँ हो गये?

इश्क़ मज़हब इश्क़ पूजा, इश्क़ ही अरदास है,
हम इबादत कर रहे थे, तुम ख़फ़ा क्यूँ हो गये?

हमसफ़र तुझको समझकर, चल पड़े थे साथ में,
मोड़पर तुम छोड़कर ख़ुद,  लापता क्यूँ हो गये?

हम भटकते ही रहे यूँ, खोजते तब दर-ब-दर ,
हम ठहर कुछ पल गये तुम, रास्ता क्यूँ हो गये?

दिल समंदर में उठा था, इश्क़ का इक ज्वार जो,
तब लहर तूफ़ान बनकर, तुम हवा क्यूँ हो गये?

हर्फ़ को बस हर्फ़ से ही, जोड़कर कहता प्रियम,
हम ग़ज़ल कहते रहे तुम, दास्ताँ क्यूँ हो गये?

©पंकज प्रियम

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