Wednesday, August 29, 2018

415.हार जाना

हार जाना
ऐ वक्त!तू कभी मुझे न आजमाना
मेरी आदत नहीं खुद से हार जाना।
कभी जंग मुझे अपनों से न लड़ाना
मेरी फ़ितरत है अपनों से हार जाना।
हरा के मुझे खुद काबिल न समझना
मेरी हसरत है जंग उनसे हार जाना।
ऐ जिंदगी! तू मुझे मौत से न डराना
मेरी चाहत नहीं जिंदगी से हार जाना।
ऐ मौत!जब आना दोस्त बनके आना
मेरी नियति नहीं दुश्मनों से हार जाना।
©पंकज प्रियम

No comments: