Sunday, August 19, 2018

409.कुछ कहना है

कुछ कहना है

ऐ कवि!अभी कहां तुझको मरना है
अभी तो बहुत कुछ तुझको करना है।

थोड़ी सी खुशियां बांटनी है तुझको
थोड़े बहुत गमों को भी तो हरना है।

लफ्ज़ों की करनी बाजीगरी तुझको
शब्दों से ही सब जख्मों को भरना है।

कहां रह गया है अपना तेरा जीवन
कविता सरिता सृजन वो झरना है।

जिंदगी का हरक्षण है तेरा समर्पण
मौत से फिर क्या तुझको डरना है।

द्रौपदियों के देख रोज चीर हरण
द्रोण-भीष्म सा चुप नहीं रहना है।

कुरुक्षेत्र का खुद को कृष्ण बनाना
देख अधर्म चुपचाप नहीं सहना है।

कभी आंखों को है ख़्वाब दिखाना
कभी आँसू बनके तुझको बहना है।

चुन चुन कर सबकुछ रखते जाना
जमाने को भी बहुत कुछ कहना है।

©पंकज प्रियम

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