Friday, October 26, 2018

465.गज़ल- चाँद सा

चाँद सा
क्यूँ देखे तू चँदा, खुद चेहरा तेरा चाँद सा
क्यूँ देखूँ मैं चँदा, जब प्यारा मेरा चाँद सा।

चाहत होगा चकोर का,क्या होगा भोर का
क्यूँ इंतजार करना,ये मुखड़ा तेरा चाँद सा

प्यार है संस्कार है, प्रियतम का इंतजार है
करवा चौथ पे,बेक़रार चेहरा तेरा चाँद सा।

निकल आ रे चँदा, मामला है जज़्बात का
चंद्रदर्शन को व्याकुल चेहरा तेरा चाँद सा।

पुलकित धरती गगन,हर्षित होता प्रियम
एक चाँद को देखने खिला चेहरा चाँद सा।
©पंकज प्रियम

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