ग़ज़ल सृजन-42
क़ाफिया-अते
रदीफ-ही रहेंगे
तिथि-27जुलाई
वार-शुक्रवार
क़ाफिया-अते
रदीफ-ही रहेंगे
तिथि-27जुलाई
वार-शुक्रवार
चले जाओ जहां भी तुम,आँखों में दिखते ही रहेंगे।
भूला दो मुझको चाहे तुम,यादों में मिलते ही रहेंगे।
भूला दो मुझको चाहे तुम,यादों में मिलते ही रहेंगे।
हम मुहब्बत के वो दीवाने हैं ,जिसे भूला ना पाओगे
लाख लगा लो पहरे तुम, ख्वाबों में बसते ही रहेंगे।
लाख लगा लो पहरे तुम, ख्वाबों में बसते ही रहेंगे।
हर लफ्ज़ कहानी कहती है,जिसे मिटा ना पाओगे
कतरा कतरा लहू बनकर,आँखों से बहते ही रहेंगे।
कतरा कतरा लहू बनकर,आँखों से बहते ही रहेंगे।
जला देना तुम खत सारे,यादों को कैसे मिटाओगे
दिल की धड़कन बनकर,रगों में धड़कते ही रहेंगे।
दिल की धड़कन बनकर,रगों में धड़कते ही रहेंगे।
फेंक देना तुम फूलों को,वो पन्नें कैसे तुम फाड़ोगे
तेरी चाहत के हर पन्ने पर,"प्रियम"छपते ही रहेंगे।
तेरी चाहत के हर पन्ने पर,"प्रियम"छपते ही रहेंगे।
©पंकज प्रियम
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