सजा भी खूबसूरत दे
वफ़ा की खाएं हम कसमें,ऐसी ना जरूरत दे
निगाहों में जो बस जाए,तू ऐसी कोई सूरत दे।
तुम्हारे प्यार की खातिर,हदों से हम गुज़र जाएं
मगर दिलकश गुनाहों की,सजा भी खूबसूरत दे।
इश्क़ समझा सकूं तुझको,थोड़ी तो मोहलत दे
मुझे मंजूर होगा सब,लगा तू जो भी तोहमत दे
तुम्हारे रूह के अंदर,हमारी रूह बिखर जाए
मगर अलमस्त बहारों सी,अपनी तू मुहब्बत दे।
कभी ना दूर रह पाऊं,तू अपनी ऐसी चाहत दे।
तेरे दिल में संवर जाऊं,मुझे तू ऐसी हसरत दे
तुम्हारे इश्क़ में खोकर,हमारा प्रेम निखर जाए
इबादत कर सकूं जिसकी,ऐसी कोई मूरत दे।
©पंकज प्रियम
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