रवि आदित्य सविता सूर्य, दिनकर भानु प्रभाकर,
मरीचि हंस अंशुमाली, जगत रौशन करे भास्कर।
सहस्रांशु त्रिलोचन,....हरिदश्वम विभावसवे-
त्रिमूर्ति द्वादशात्मकम, करे कल्याण दिवाकर।।
महापर्व लोकआस्था का, छठ महिमा अपरम्पार,
अस्ताचल-उदयगामी, दोनों वक्त जयजयकार।
कठिन तप निर्जला छठ ये, करे जो पर्व ये मन से-
मिटे सब कष्ट जीवन का, होता उसका बेड़ापार।।
कहे भूगोल ये हरदम, जो उगता है वो डूबेगा,
हमारी आस्था कहती, जो डूबता है वो उगेगा।
इसी विश्वास के बल पर यहाँ होती सदा पूजा-
हमेशा सोच पूरब की, जहाँ से सूर्य निकलेगा।।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड
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