Thursday, November 28, 2019

730. धर्म और विज्ञान

धर्म और विज्ञान
©पंकज प्रियम
हमारा सम्पूर्ण धर्म-कर्म वैज्ञानिक तथ्यों से भरा पड़ा है। वेद और ग्रंथो में जो भी व्रत उपवास और धर्मकर्म बनाये गए हैं उसके पीछे बहुत गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है जिसे अब विज्ञान भी मानने लगा है। व्रत, उपवास, तप, यज्ञ और विभिन्न संस्कारों में वैज्ञानिक तथ्य छुपे हुए हैं। फिर चाहे ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पूजा-ध्यान करना या फिर कली व्रत त्यौहार। पूजा त्यौहारों का सीधा सबन्ध साफ सफाई और सम्पूर्ण स्वच्छता से है। प्रतिदिन के सूर्य नमस्कार में शरीरिक व्यायाम के सारे आसन आ जाते हैं। इसी तरह पूजा आराधना में पवित्र और सात्विक विचारों के साथ पालथी मार कर सीधा बैठने का विधान है जो हमारे मेरु दण्ड को मजबूत करता है और एकाग्रता को बढ़ाता है। सर जमीन से सटाकर और दोनों हाथों को पीछे पीठ की ओर रखकर प्रणाम करने का विधान है इससे भी शरीर खज़ व्यायाम हो जाता है। शंख बजाने से जहाँ हमारी स्वशन प्रणाली मजबूत होती है वहीं शंख की ध्वनि से न केवल नकारात्मक ऊर्जा ख़त्म होती है बल्कि आसपास सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण भी हो जाता है।
         इसी तरह आरती के दौरान ताली बजाने की परंपरा है जिससे रक्तवाहिनी जागृत होती है और रक्तचाप सामान्य रहता है। प्रसाद लेने से पूर्व आरती लेने का विधान है कपूर की लौ में आरती लेने से हाथों के सारे कीटाणु मर जाते हैं। भोग लगाने के लिए खर-मूसल में चावल कूट या पीस कर उसका प्रसाद बनता है जो सही मायनों में पौष्टिक होता था। आज लोग बाजार के पॉलिस किये हुए चावल और गेहूँ की जगह वही पुराना लाल चावल और चोकर युक्त आटा पसंद कर रहे हैं ।
      प्रसाद में तुलसी दल डाला जाता है, प्रसाद कितना भी गर्म रहे वह सूखता नहीं लेकिन अगर प्रसाद में कुछ भी विषकारक होगा तो  तुलसी का पत्ता सूख जाएगा। वहीं तुलसी खाने से शरीर को कई तरह के लाभ मिलते हैं। हवन की समिधा में कई तरह की सामग्री का मिश्रण होता है जिसके धुएँ से कीड़े-मकोड़े, मच्छड़ और कीटाणुओं का नाश होता है। यज्ञ के धुएँ से वातावरण भी स्वच्छ होता और समय पर बारिश के लिए अनुकूल माहौल तैयार करता है। हमारे पूर्वज तांबे के लोटे में पानी पीते थे जिसका लोग मजाक उड़ाते थे लेकिन आज कॉपर कोटेड बोतल और आरओ आने लगा है। पूजा में मिट्टी ,पीतल और कांसे के बर्तन का प्रयोग होता है। आज डॉक्टर नॉनस्टिक वर्तन को छोड़कर फिर इन्हीं बर्तनों की सलाह दे रहे हैं।
    ॐ की ध्वनि की ताकत को वैज्ञानिकों ने भी माना है। इसी तरह मंदिर में आपने देखा होगा कि घण्टी ऊपर बंधी होती है जिसे बजाने के लिए ठीक उसके नीचे खड़ा होना पड़ता है फिर हाथ उठाकर घन्टी बजाते हैं।घण्टी जब बजती है तो उसकी ध्वनि गोलाकर वृत में घूमते हुए हमारे पूरे शरीर को अपने ध्वनि चक्र में समाहित कर लेती है जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मन शांतचित हो एकाग्र हो जाता है। मंदिर में प्रवेश से पूर्व हाथ और पैर भी धोने का विधान है इसके पीछे भी विज्ञान है पहले लोग मीलों तक पैदल चलकर मंदिर आते थे रास्ते में तरह-तरह की गंदगी और धूल से थक जाते थे, हाथ और पैर धोने से एक तो स्वच्छता हो जाती थी दूसरे थकान भी खत्म हो जाती थी। ऐसे हजारों उदाहरण है जिससे स्पस्ट कि हमारा धर्म,संस्कार और संस्कृति वैज्ञानिक तथ्यों से प्रमाणित है।

©पंकज प्रियम

No comments: