समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
ज़हर प्रदूषण तुम करोगे तो, कहर अब मार डालेगा। हवा पानी प्रदूषित हो, ज़हर सब मार डालेगा। अभी आगाज़ है ये सब, अगर जो तुम नहीं चेते- तुम्हारा ही बसाया ये, शहर तब मार डालेगा। ©पंकज प्रियम
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