ग़ज़ल
122 122 122 122
चुराकर नज़र से नज़र देखते हो,
पिलाक़े मुहब्बत असर देखते हो।
यहाँ भी वहाँ भी जमीं आसमां में
मिलूँगा वहीं तुम जिधर देखते हो।
तुम्हारी नज़र में तुम्हारे जिगर में,
बसा हूँ यहीं पर किधर देखते हो।
नज़र तीर हमको यूँ हीं मार देती,
पिलाक़े मगर तुम ज़हर देखते हो।
प्रियम को जलाना तुम्हें खूब भाता,
इधर मैं खड़ा पर उधर देखते हो।
©पंकज प्रियम
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