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ये मेरी मुहब्बत तुम्हारी जवानी,
बनेगी अलग ही हमारी कहानी।
कभी प्यार से तुम जरा मुस्कुरा के,
अधर से अधर पे लगा दो निशानी।
नज़र को नज़र से कभी यूँ मिलाके,
समंदर निग़ाहों में उठा दो रवानी।
जरा पास आओ गले से लगाओ,
करो शाम मेरी जरा सी सुहानी।
प्रियम की मुहब्बत सदा है तुम्हारी,
बनाकर दिवाना बनो तुम दिवानी।
©पंकज प्रियम
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