Monday, September 16, 2019

655. इश्क़ उधारी

इश्क़ उधारी
इश्क़ में यूँ तेरा कर्ज़ा उतार चले,
जीत कर भी खुद को हार चले।

तुम याद करो या न करो मुझको,
हम तेरी यादों को ही संवार चले।

आदमी हूँ इश्क़ होना लाज़िमी है,
दिल के खातों में मेरा उधार चले।

हर्फ़ दर हर्फ़ जो तुम उतर आते,
लफ्ज़ों से ही मेरा कारोबार चले।

मेरे दर्द से तुझको है कहाँ वास्ता,
तुम तो प्रियम को जिंदा मार चले।
©पंकज प्रियम

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