ग़ज़ल
तुम जब चाहे ख़यालों में आ जाती हो,
खुद मैं बुलाऊँ तो फिर भाव खाती हो!
तेरा ख़्वाब कैसा तेरी जुस्तजू कैसी?
तुम ख़यालों में किसे आज़माती हो?
इश्क़ के समंदर में डूबकर जो निकला
उसे इश्क़ का फ़लसफ़ा सिखाती हो!
है मुहब्बत मुझसे तो इज़हार कर दो,
दूर रहकर इस कदर क्यूँ तड़पाती हो?
नापनी है गहराई तो डूबना ही होगा,
साहिल से यूँ अंदाज़ क्या लगाती हो?
देखी समझी जिसने यह दुनियादारी,
तुम उसको भी दिल से बहलाती हो!
लफ़्ज़ों का जिसने रच दिया समंदर,
प्रियम को अल्फ़ाज़ों में उलझाती हो!
©पंकज प्रियम
16.09.2019
1:09AM
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