समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
2122 2122 आज सबकुछ बोलना है, राज़ दिल का खोलना है।
ख़्वाब देखा जो कभी था, आज उसको तोड़ना है।
दर्द तो होगा बहुत पर, घाव दिल का फोड़ना है।
जख़्म गहरे हो गये जब, प्यार को अब छोड़ना है।
ऐ प्रियम कुछ रह गया है या अभी मुँह मोड़ना है। ©पंकज प्रियम
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