Wednesday, September 4, 2019

645. अश्क़ मुहब्बत

ग़ज़ल
काफ़िया- अत
रदीफ़- हो चुकी है
2122 2122 2122 2122
आँख को अब आंसुओं की रोज आदत हो चुकी है,
दिलजलों की क्या कहानी ख़त्म चाहत हो चुकी है।

हो गया अब बेवफ़ा तो क्या कहूँ मैं आज तुमको
प्यार का मुँह मोड़ लेना आज किस्मत हो चुकी है।

हम कभी जो दूर जाते, तुम शिकायत खूब करते,
अब हमारे पास आने पर शिकायत हो चुकी है।

आज़माती ज़िन्दगी तो आज़माती मौत भी क्यूँ?
मौत की भी दिलबरों सी आज हसरत हो चुकी है।

ख़्वाब हमने साथ देखा प्यार तुमने ही जगाया,
थी मुहब्बत खूब तो क्यूँ आज नफऱत हो चुकी है।

हम वफ़ा करते रहे पर तुम जफ़ा करते रहे क्यों,
बेवफ़ाई आज दिल की ख़ास फ़ितरत हो चुकी है।

इश्क़ मुझसे था तुम्हें या दिल लगाने का खिलौना,
छोड़कर अपने प्रियम किनसे मुहब्बत हो चुकी है।

©पंकज प्रियम
4 सितम्बर 2019
00:26 AM

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