इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने आजा
आजा आजा मुझे सीने से लगाने आजा।
प्यार के फूल मेरे दिल में खिलाने आजा
आजा आजा मुझे खुद से मिलाने आजा।
आजा आजा मुझे खुद से मिलाने आजा।
जाम पैमाग जो आँखों से छलकता तेरा
अपने होठों से वही जाम पिलाने आजा।
अपने होठों से वही जाम पिलाने आजा।
इश्क़ की आग जो सीने में जला रक्खा है
इश्क़ की आग से वो आग बुझाने आजा।
इश्क़ की आग से वो आग बुझाने आजा।
प्यार का ज्वार जो साँसों ने उठा रक्खा है
अपनी मौजों से ही उसको गिराने आजा।
अपनी मौजों से ही उसको गिराने आजा।
जवां दिल जोश में जो होश गवां बैठा है,
अपने आगोश में ले होश जगाने आजा।
अपने आगोश में ले होश जगाने आजा।
जब तलक जिंदा रहा रोज रुलाया तुमने,
मेरी मैय्यत पे अभी अश्क़ बहाने आजा।
मेरी मैय्यत पे अभी अश्क़ बहाने आजा।
तेरी यादों का 'प्रियम' दीप सजा रखा है
अपने हाथों से वही दीप जलाने आजा।
अपने हाथों से वही दीप जलाने आजा।
©पंकज प्रियम
2 comments:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(20 -12 -2019) को "कैसे जान बचाऊँ मैं"(चर्चा अंक-3555) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता लागुरी 'अनु '
बहुत सुंदर सृजन ।
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