2122 2122 2122 212
खोलकर तुमने क्या कभी देखी हमारी चिट्ठियां,
या लिफ़ाफ़े में रही..... रोती बिचारी चिट्ठियां।
खोलकर दिल रख दिया था प्यार में तेरे सनम,
बोल तुमने क्या किया वो देख सारी चिट्ठियां।
दिल मचलता है मिरा, जब देखता हूँ ख़त तिरा,
आज भी हमने रखी है,... वो तुम्हारी चिट्ठियां।
क्या हसीं वो दिन भी थे, रोज लिखता था तुझे,
कौन लिखता है कहाँ अब आज प्यारी चिट्ठियां।
अब प्रियम क्यूँ ख़त लिखेगा फोन जो सस्ता हुआ
आज बदला जो जमाना, खुद से हारी चिट्ठियां।
©पंकज प्रियम
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