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Sunday, June 24, 2018

371.जहर


हद हो गई इम्तेहां की
स्कूल में फ़ट गई चादर
मां जैसी होती सिस्टर
पिता से होते हैं फादर।
तुम भी चुप रहे मसीहा!
कुकृत्य हुआ तेरे ही घर
सभी पाप के भागी बने
क्या फादर,क्या सिस्टर।
सारी हदें यूँ पार कर दी
अस्मत तार तार कर दी
कोई लूटा,कोई बच गया
सब हुआ,तेरे कहने पर।
क्या खूब फर्ज निभाया
फादर का धर्म निभाया
दरिंदों के हाथ सौंपते
क्या तरस नहीं आया?
सिर्फ लड़कियां नहीं थी
जनचेतना की बोली थी
हैवानियत भी कांप उठी
ढाया जैसा उनपे कहर।
अब खामोश हो गए सारे
शोर भी थम गए किनारे
क्या जंगल,गांव, शहर
कैसा फैल रहा ये जहर।
नारी तुझे ही उठना होगा
खुद हथियार बनना होगा
बचाना है सम्मान अगर
तुझे तलवार बनना होगा।
©पंकज प्रियम
24.6.2018

Saturday, June 23, 2018

369.दिल की बात

आज फिर से वही बात किया जाय
आंखों से दिल की बात किया जाय।
दिल के रस्ते रूह तक उतर जाने दो
मुहब्बत का यूँ एहसास किया जाय।
लबों को आज बस खामोश रहने दो
धड़कनों से ही मुलाकात किया जाय।
दिल को आज यूँ बस बहक जाने दो
महकती सांसों में ही रात किया जाय।
बदन को बस इश्क़ में महक जाने दो
बहके कदमों को एक साथ किया जाय।
नफरत की दीवारों को ढह जाने दो
जीवन को मुहब्बत के हाथ किया जाय।
©पंकज प्रियम8

Friday, June 22, 2018

368.राह दीवानों की

राह बड़ी मुश्किल होती दीवानों की
आग में जलती जिंदगी परवानों की।

दोस्त ही हो जाए,अगर यूँ बेवफ़ा तो
फिर जरूरत ही क्या है दुश्मनों की।

पूछो ना हाल तुम और मेरे दिल का
बहुत आग जली है यहां हसरतों की।

चले जाओ जहाँ भी तुमको है जाना
सुनाएगी तुझे सदा मेरे धड़कनों की।

मिटा दो नाम मेरा अपनी किताबों से
कैसे मिटाओगे निशां मेरे गुलाबों की।

©पंकज प्रियम

Wednesday, June 20, 2018

367.जमाने में

राज महफ़ूज थी किनारे में
वो डूब गए पता लगाने में।

समन्दर में घर बनाया हमने
वो रह गए रेतों को बचाने में।

छोड़ आये हम जमाना पीछे
वो रह गए दुनिया दिखाने में।

क्या कहेंगे चार लोग यहाँ पे
सब रह गए इसे सुलझाने में।

कौन सुनता किसी का यहाँ पे
सब लगे हैं अपनी सुनाने में।

दुश्मनों से नहीं है कोई खतरा
अपने ही लगे हैं अब सताने में।

न करो इश्क में रूसवा,रूठे तो
उम्र बीत जाएगी फिर मनाने में।

©पंकज प्रियम

Tuesday, June 19, 2018

366.मज़ा

जो मज़ा आंखों से जाम छलकाने में है
वो क्या ख़ाक मज़ा किसी मैखाने में है।

वो खुशबू भी क्या महकेगी इस चमन में
जो मज़ा इश्क़ से बदन को महकाने में है

वो क्या ख़ाक बहलाएँगे इश्क़ में मुझको
मज़ा तो तेरी इन नजरों के बहलाने में है।

गमों के बाज़ार में कब तलक है जीना
मज़ा तो प्यार में हंसते मर जाने में है।
©पंकज प्रियम

Saturday, June 16, 2018

364.पत्थर का हिसाब

नेता हमारे इफ़्तार घर-घर खाते रहे
हमारे जवान उनके पत्थर खाते रहे।
हम यहां पर ईद मुबारक कहते रहे
सरहद पे जवानों के लहू बहते रहे।
कहते हैं ईद भाईचारे का त्यौहार है
ईद पे भी उनका कैसा ये व्यवहार है।
माहे रमज़ान हमने तो मोहलत दी थी
पर ईद में भी उन्होंने खून की ईदी दी।
कैसी ये ईद है, कैसा माह रमजान है
तिरंगे में लिपटा,रोज लौटा जवान है।
रोजे में था सुजात,इफ़्तार मौत लाई
ईद में घर औरंगजेब की लाश आई।
सरहद पार मन्सूबे,बड़े खतरनाक है
पाक की सारी हरकतें बड़ी नापाक है।
अब नहीं रमजान का हमें सब्र चाहिए
हर एक आतंकी का बना कब्र चाहिए।
हमें नहीं अब नेताओं की निंदा चाहिए
एक भी आतंकी हमें नहीं जिंदा चाहिए।
आतंक का मुंहतोड़ जवाब देना होगा
हर पत्थर का हमें हिसाब लेना होगा।
©पंकज प्रियम

362.कौन आएगा

कौन आएगा?
खुद से रूठे तो मनाने कौन आएगा
खुद न उठे तो जगाने कौन आएगा।
चाहत की खुशबू से ही महका लेना
मुहब्बत से घर सजाने कौन आएगा।
बेफिक्र होकर दरवाजा खोल रखना
इस उम्र में दिल चुराने कौन आएगा।
खुद से ही दिल को तसल्ली दे लेना
हाल दिलों का सुनाने कौन आएगा।
मेरी यादों से ही,तुम ख़्वाब बसा लेना
इसके सिवा घर, बसाने कौन आएगा।
बहते अश्कों को तुम मोती बना लेना
अब दर्द में आँसू बहाने कौन आएगा।
दिल के जख़्म को अंदर ही छुपा लेना
अब उसमें मरहम लगाने कौन आएगा।
आंखों में ही तुम अब रात बिता लेना
सुनाकर लोरियाँ,सुलाने कौन आएगा।
खुद से ही सारे रिश्ते तुम निभा लेना
प्रियम से रिश्ते,निभाने कौन आएगा।
©पंकज प्रियम

Wednesday, June 13, 2018

361.कल हमारा हुआ

हमारा हुआ
वक्त का फिर नया सा इशारा हुआ
गुजरा कल मानो फिर हमारा हुआ।
जो वक्त गुजर गया था जिंदगी में
लौटके फिर वही मेरा सहारा हुआ।
उल्फ़त की राह में भी मुस्कुराते रहे
औरों की हंसी से मेरा गुजारा हुआ।
कहाँ तो बाजारों में सुकून ढूढते रहे
सुकूँ मानो आसमां का सितारा हुआ।
चरागों के तले अक्सर अंधेरा देखा
अंधेरी रात में जुगनू उजियारा हुआ।
जिनकी यादों के सहारे कटी जिंदगी
मानो दरिया का बहता किनारा हुआ।
©पंकज प्रियम

Monday, June 11, 2018

360.बिखराए गए हैं

बिखराए गए हैं।
वो तो औरों से बहलाए गए है
हम तो अपनों से सताए गए हैं।
क्या कहेंगे वो अपनी सफाई में
अपनी बातों में झुठलाए गए हैं।
कैसे भुल पाएगा,उन लम्हों को
जो मेरे ही ज़ानिब बिताए गए हैं।
भले नाम अब दो किसी और का
लबों पे गीत तो मेरे ही गाए गए हैं।
आँखों में तस्वीर भले बदल डालो
इनमें सपने तो मेरे ही चुराए गए हैं।
जो ख़्वाब कभी सजाया था प्रियम
बड़े करीने से उसे बिखराए गए हैं।
©पंकज प्रियम
10.6.2018

Thursday, June 7, 2018

357.जिन्दगानी

किस बात का करें घमंड
जब दुनियां ही बेगानी है।
छोड़कर जाना दुनियां को
बस यही सच्ची कहानी है।
ये दौलत और ये शोहरत
सब यहीं छोड़कर जाना है।
नहीं कुछ भी जाएगा साथ
देह भी यहीं छोड़ जाना है।
क्यूँ करें किसी से शिकवा
क्यूँ लड़ना और झगड़ना है
उधार की तो है ये जिंदगी
क्या पाना,क्या बिछड़ना है।
जीवन पल में बिखर जाए
दुनियाँ की रीत ये पुरानी है
कब कहाँ कैसे गुजर जाएं
चार दिनों की जिंदगानी है।
©पंकज प्रियम
7.6.2018

Thursday, May 31, 2018

356.निशानी है बहुत

356.निशानी है बहुत
हार की खातिर तेरी ये बेईमानी है बहुत
तेरी हरचाल ही जानी पहचानी है बहुत।
तेरे ख्यालों से पहले सब जान जाता हूँ
तुम्हारे दिल में ही छुपी कहानी है बहुत।
तुम्हारे हर कदम को पहचान जाता हूँ
बनके अनजान करती नादानी है बहुत।
क्या छुपाओगे तुम, हमसे हाल अपना
तेरी जिंदगी में बिखरी परेशानी है बहुत।
कभी फुर्सत मिले तो ज़ानिब आ जाना
तुझे अपनी भी कहानी,सुनानी है बहुत।
तेरे ही दर्द से जख़्म हुआ है यहाँ गहरा
मेरे दिल में जख़्म की निशानी है बहुत।
बहुत गुरुर न तुम,अपने हुश्न पे यूँ करना
इन आँखों ने यहाँ देखी,जवानी है बहुत।
इश्क़ समंदर भी पार उतर आया प्रियम
मेरी कहानी की दुनियां दीवानी है बहुत।
©पंकज प्रियम
31.5.2018

355.अपना बनाकर मानेंगे

355.अपना बना कर मानेंगे
धड़कन दिलों की आज बढ़ा कर मानेंगे
होश उनके हम तो आज उड़ा कर मानेंगे
चले जाओ, जहां आज तुमको है जाना
मुहब्बत का शमां आज जला कर मानेंगे
कैसे भूलोगे लम्हें जो कभी साथ गुजारा
हरपल का हिसाब हम चुका कर मानेंगे।
मेरी नजरों से दूर चाहे जहां छुप जाना
महफ़िल में भी दिल तो चुरा कर मानेंगे।
कर दो मुहब्बत में लाख रूसवा मुझको
इश्क़ समंदर तुझको तो डूबा कर मानेंगे।
निभा ले दुश्मनी प्रियम से तू खूब अपना
कसम से तुझको अपना बना कर मानेंगे।
©पंकज प्रियम
29.5.2018

354.ऐतबार

354.एतबार
जिन्दगी की तरह मुझसे तू प्यार कर
एक पल ही सही मुझपे एतबार कर।
चार दिनों की तो फ़क़त जिंदगानी है
कर ले मुहब्बत,न कभी तकरार कर।
हर लम्हा ये जिंदगी,कहती कहानी है
बढ़ा ले कदम,न कभी तू इंतजार कर।
तेरे ही इश्क़ में लिख दी मैंने जवानी है
मैंने तो कर दिया,तू जरा इकरार कर।
तेरी हर धड़कन,प्रियम की दीवानी है
मान ले दिल की तू ,न यूँ इनकार कर।
©पंकज प्रियम
28.5.2018

Saturday, May 26, 2018

352. जलता है

जुनूँ हर दिल में पलता है
सितारे तोड़ लाने का जुनूँ हर दिल में पलता है।
मगर सितारों से भी दूर तलक ये दिल ढलता है।
अपनी मुहब्बत से भी झूठी कसमें जो खाता है
चाँद सितारे तोड़के लाने की बात वही करता है।
सच्ची मुहब्बत के सिवा नहीं है,कुछ तो पास मेरे
इश्क़ की रौशनी में दिल मेरा जुगनू से जलता है।
जो कह दो अगर,मैं भी तो चाँद तोड़ लाऊं मगर,
टूटते चाँद को देखना,मेरे ही दिल को खलता है।
जो कह दो अगर,इक ख़्वाब मैं भी सजा लूं मगर
हो न सके जो पूरे ख़्वाब तो दिल बड़ा सालता है।
मुहब्बत की बाज़ी लगाकर देख ली सबने प्रियम
जो हार गए दिल अपना,बैठकर हाथ मलता है।
©पंकज प्रियम
26.5.2018

Friday, May 25, 2018

351.क्यों है

क्यों है।
सबने पाली यहाँ इतनी हसरतें क्यों है?
हर दिल में बसी इतनी नफ़रतें क्यों है।
चंद खुशियों की तलाश में भटक रहे
अपनों से ही हुए इतने बेगाने क्यों है।
सबको तो नहीं मिलता मुकद्दर यहाँ
हासिल करने की चाह रखते क्यों है।
मौत तो हर किसी का मुक़म्मल यहाँ
न जाने फिर मौत से सब डरते क्यों हैं।
जिंदगी का कोई कहाँ ठिकाना यहाँ
जीने के लिए यहाँ सब मरते क्यों है।
हर किसी का अपना है मुकद्दर यहां
फिर प्रियम,सबसे लोग जलते क्यों हैं।
©पंकज प्रियम
25.5.2018

350.आया ही नहीं

आया ही नहीं।
राज अपना तो बताया ही नहीं।
इश्क़ हमसे तो जताया ही नहीं।
आपने वादा जो किया था हमसे
वो कभी भी तो निभाया ही नहीं।
दिल से हम तो मुहब्बत करते रहे
इश्क़ में गुणा भाग आया ही नहीं।
दिल में आया सो कह दिया हमने
प्यार में कभी कुछ छुपाया ही नहीं।
अंदर ही सब दर्द सह लिया हमने
दुनियां को जख़्म दिखाया ही नहीं।
हर सितम चुपचाप सह लिया हमने
जिंदगी में किसी को रुलाया ही नहीं।
सादगी में ही जिंदगी जी लिया हमने
ख़्वाब को आंखों में बसाया ही नहीं।
खुद से ही खुद को मना लिया हमने
आपने कभी हमको मनाया ही नहीं।
©पंकज प्रियम
25.5.2018

Thursday, May 24, 2018

349.हो गए अपने

हो गए अपने
प्यार के साथ यूँ लगे बहने
गैर भी आज हो गए अपने
इश्क़ में जो छू लिया तुमने
जख़्म मेरे अभी लगे भरने।
इश्क़ ही तो किया था हमने
लोग हमसे यहां लगे जलने।
लौट आयी जो मुहब्बत मेरी
ख़्वाब फिर बहुत लगे पलने।
जो ख़्वाब कभी देखा हमने
ख़्वाब वही फिर लगे सजने।
बन्द आंखों ने जो तब देखा
आज मेरे पूरे हो गए सपने।
इश्क़ में क्या लिखा है तुमने
आज प्रियम से लगे मिलने।
©पंकज प्रियम

347.याद तो आएगी

347.याद तो आएगी
आवाज़ हमारी तुम्हें याद दिलाएगी
वो बात हमारी तुम्हें रोज सताएगी।
जो साथ हमारे तूने साथ तो गुजारा
वो साथ हमारी तुम्हें याद तो आएगी।
हर रात मैंने तुम्हें जो चाँद सा बनाया
वो रात हमारी तुम्हें बहुत ही रुलाएगी।
ख्वाबों में अपने हरदम तुम्हें ही बसाया
क्या पता था ख्वाब मेरा ही बिखराएगी। 
उनकी खामोशी को लफ्ज़ों से सजाया
सोचा नहीं मेरे लब खामोश कर जाएगी।
उनकी जफ़ाओं पे भी तो एतबार किया
सोचा नहीं प्रियम की,दिल तोड़ जाएगी।
©पंकज प्रियम
24.5.2018

Wednesday, May 23, 2018

346.क्या बात करती है!

345.क्या बात करती है!
तोड़कर सारे रिश्ते,तू क्या बात करती है
भूलकर सारे लम्हें,तू किसे याद करती है
कैसे करेगा यहाँ कोई तुझपे अब भरोसा
फ़रेबी नजरों से अब मुलाकात करती है।
मत मांग दुवाएँ किसी के लिए अब यहाँ
दिल तोड़कर खुदा से फरियाद करती है।
हसीं ख़्वाब जो था तुमने मुझे दिखाया
याद करके आँखे मेरी बरसात करती है।
तब तलक खुद मुहब्बत उसने जगाया
अब मेरे जज्बातों पे सवालात करती है।
अपने लबों पे मेरा ही नाम तब सजाया
अब मुझे ही बदनाम दिनरात करती है।
उनकी जफ़ाओं को समझा नहीं प्रियम
अब तो दुश्मनों से वो प्रतिघात करती है।
©पंकज प्रियम
23.5.2018

Tuesday, May 22, 2018

345.देना पड़ेगा

345.देना पड़ेगा
यहां नहीं मगर,वहां तो कहना पड़ेगा
हर सवाल का तो जवाब देना पड़ेगा।
तेरे दर्द को आंखों से बहाया जो हमने
आँसू के कतरे का हिसाब देना पड़ेगा।
तेरे इश्क़ में लिख दिया जिंदगी हमने
उसी जिंदगी का हिसाब देना पड़ेगा।
तेरी यादों की लिहाफ़ में गुजारी रातें
सारी रातों का हिसाब तो देना पड़ेगा।
मेरे बगैर कैसे जीवन है गुजारा तुमने
हरेक पल का हिसाब तो देना पड़ेगा।
तेरे हर दर्द का ख्याल रखा था जिसने
मर्ज की दवा तो प्रियम को देना पड़ेगा।
©पंकज प्रियम
22.5.2018