Wednesday, May 23, 2018

346.क्या बात करती है!

345.क्या बात करती है!
तोड़कर सारे रिश्ते,तू क्या बात करती है
भूलकर सारे लम्हें,तू किसे याद करती है
कैसे करेगा यहाँ कोई तुझपे अब भरोसा
फ़रेबी नजरों से अब मुलाकात करती है।
मत मांग दुवाएँ किसी के लिए अब यहाँ
दिल तोड़कर खुदा से फरियाद करती है।
हसीं ख़्वाब जो था तुमने मुझे दिखाया
याद करके आँखे मेरी बरसात करती है।
तब तलक खुद मुहब्बत उसने जगाया
अब मेरे जज्बातों पे सवालात करती है।
अपने लबों पे मेरा ही नाम तब सजाया
अब मुझे ही बदनाम दिनरात करती है।
उनकी जफ़ाओं को समझा नहीं प्रियम
अब तो दुश्मनों से वो प्रतिघात करती है।
©पंकज प्रियम
23.5.2018

No comments: