मध्दम-मद्घम सा सूरज,
साँझ सिन्दूरी सुरमई।
हाथों में ले हाथ सजन,
तुझमें मैं तो खो गई।
डूब रहा सूरज क्षण-क्षण,
नभ बादलों का डेरा है।
अम्बर-धरती का ये मिलन,
बस लगता तेरा-मेरा है।
नभ बादलों का डेरा है।
अम्बर-धरती का ये मिलन,
बस लगता तेरा-मेरा है।
सूरज की किरणों से देखो,
स्वर्णिम आभा है बिखरी।
अम्बर को आलिंगन कर के
कण-कण धरती है निखरी।
स्वर्णिम आभा है बिखरी।
अम्बर को आलिंगन कर के
कण-कण धरती है निखरी।
हाथों में ले हाथ सजन,
चलो चलें उसपार प्रियम।
हो सुहानी रातें और बस
प्यार-मुहब्बत का मौसम।
चलो चलें उसपार प्रियम।
हो सुहानी रातें और बस
प्यार-मुहब्बत का मौसम।
©पंकज प्रियम

1 comment:
सूरज के ढलने का इतना खूबसूरत चित्रण कम ही पढ़ने को मिलता है। “साँझ सिन्दूरी सुरमई” — क्या कमाल का भाव है! पूरा दृश्य आंखों के सामने उतर आता है — हल्की ठंडक, सुनहरी किरणें, और दो दिलों का साथ। सबसे अच्छी बात ये लगी कि हर पंक्ति में शांति और अपनापन झलकता है, कोई दिखावा नहीं।
Post a Comment