Showing posts with label कविता. Show all posts
Showing posts with label कविता. Show all posts

Sunday, May 5, 2019

565. वोट की चोट

वोट की चोट

धूल चटा दो उस बोली को, जो देश विरोधी बात करे।
भारत की रोटी खाकर, जो भारत से ही प्रतिघात करे।

कुचल डालो फ़न उसका, जो ज़हर उगल के घात करे।
आस्तीनों में छुपकर हरदम, जो भीतर-भीतर घात करे।

हुआ नहीं जो देश का अपना, क्यूँ उसपर विश्वास करें।
देश तोड़ने की इच्छा रखता, क्यूँ उसकी हम आस करें।

हुआ नहीं जो धर्म का अपना, क्या करेगा पूरा सपना।
अपसंस्कृतिओं का जो वाहक, कब होगा तेरा अपना।

मुग़ल, ब्रिटिश या यूनानी, संस्कारों पर ही वार किया।
नजऱ गड़ाई मन्दिरों पर, हमला सबने हर बार किया।

हमें लड़ाकर आपस में ही, यहाँ बर्षों तक राज किया।
लूट ले गए धन वो सारे, नहीं हमारा कुछ काज किया।

आज़ाद कर गये फिरंगी पर, अंदर ही अंदर तोड़ गये
कुटिल सियासत की रियासत, यहीं पर वह छोड़ गये।

आ गया फिर वक्त वही, फिर से इतिहास दोहराना है।
वोट का अब चोट देकर, सब जयचन्दों को हराना है।

बुज़दिलों की यह धरा नहीं, लिखा इतिहास है वीरों ने।
हर दुश्मन को धूल चटायी, सदा भारत के शूरवीरों ने।

आया लुटेरा बाबर चाहे, काना ख़िलजी या फिर गोरी
छक्के छुड़ाये हमने सबके, करनी चाही जिसने चोरी।

वीर शिवा की धरती है ये, महाराणा प्रताप की भूमि है।
झाँसी की रानी से थर्राये, अंग्रेज़ो ने यह माटी चूमि है।

जब टिका नहीं ग्रेट सिकन्दर, क्या औकात तुम्हारी है।
धूल चटा दूँ अब मत से तुझको, यह औकात हमारी है।

©पंकज प्रियम
29/04/2019

देश के सुनहरे भविष्य के लिए अपना मतदान करें।

562. आतंक के आँसू

(मेरी इस कविता के प्रकाशन पर दो दिन पूर्व फेसबुक ने रोक लगा दी थी। रिपोर्ट करने पर आज प्रकाशित हुई।आख़िर गलत क्या पूछा है मैंने? आप ही दें जवाब। इस तस्वीर को देखकर मैं रात भर सो नहीं पाया , क्योंकि मुझमें संवेदना है जिंदा)

आतंक और दो बूंद आँसू

उफ़्फ़!!
क्या लिखूँ....?
कैसे लिखूँ....?
इस अबोध की भाँति आज
कलम हमारी थम गयी।
देखकर यह तस्वीर
रातभर मैं सो नहीं पाया
आँखों से आँसू रोक न पाया
क्योंकि मेरा जमीर है जिंदा
मेरी भवनाएं संवेदना है जिंदा
कौन होगा ?
जो यह दृश्य देख न रोया होगा
क्या गुनाह था इसका?
जो यूँ खामोश कर किया
मां-बाप के संग यह भी गयी थी ईश्वर के दर
कहते बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं
तो फिर क्या ईश्वर ने ही ले ली अपनी जान

कुछ सवाल प्रभु ईशा मसीह से
,गॉड या जीसस
क्या तू भी नहीं रोया जीसस? देख यह मंज़र
तुझे भी तो आततायियों ने लटकाया था शूली पर
उसी दर्द को जरा महसूस कर लेते
कम से कम इस मासूमियत की जान बख्स देते!
क्या यही फल है तुम्हारे प्रेयर का?

और कुछ सवाल ख़ुदा से
या अल्लाह !
या ख़ुदा क्या कहूँ तुझको
क्या मर गया ज़मीर तेरा भी?
जो तुम्हारे नाम पर सब कर रहे जिहाद
क्या यही है जिहाद?
ऊँचे -ऊँचे मस्जिदों में लगे भौंपू से
क्या इसीलिए तुझे रोज सब देते अजान
की आँख मूंद लो, जान कर भी बनो अनजान!
तुम्हारे नाम पर जो जिहादी तैयार होते हैं।
क्यूँ बन जाता है आत्मघाती बम
एक सोलह -सत्रह साल का जवान?
क्योंकि तुम्हारे नाम पर
उन्हें दिखाया जाता है ख़्वाब!
जन्नत और 72 हूरों का!
क्या निर्दोष और मासूमों की बलि लेकर
तुम देते हों उन्हें जन्नत नसीब?
और कितनी हूरें है तेरे घर
जो हर जिहादी को तुम देते हो उपहार!
कहते हैं आतंक का कोई धर्म नहीं होता
मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर करना
तो फिर क्यूँ सारे आतंकी होते हैं
अबतक जितने आतंकी निकले
सबका क्यों एक धर्म मज़हब जान।
मौत की नींद सो रही इस अबोध को देखो
तुम्हारा दिल नहीं कचोटता होगा
जब हैं सारे तुम्हारी ही संतान?

और कुछ सवाल,
कथित मानवाधिकारी
बुद्धिजीवी और फिल्मी कलाकार से
क्या सूख गया तुम्हारे आँखों का सारा पानी?
आतंकियों की पैरवी करने तुम सारे
पहुंच जाते हो आधी रात को कोर्ट
आतंकियो की मौत पर करते हो सेना पर चोट!
उनके लिए हमेशा रहते रुदन पसार
डर लगने लगता है तुम्हें हिंदुस्तान में!
नासिर,शाहरुख़ या आमिर
क्या आज मर गया तेरा ज़मीर?
आज गुस्सा नहीं आया तुम्हें नासिर?
इस मासूम चेहरे को देख दर्द नहीं हुआ हामिद?
जब होती है आतंक पे कार्रवाई तो
दिखने लगता है यहाँ असहिष्णुता
और करने लगते हो वापस अवार्ड!
आज इस दृश्य पे वो सारे क्यूँ है खामोश
क्या आज नहीं है उन्हें कोई होश?
न्यूजीलैंड में एक पीड़ित सरफिरे ने
जब  लिया आतंकवाद का बदला !
तो सब छाती पीटने लगे ।

और आख़िर में
बात-बात पर
अपनी स्क्रीन ब्लैक करने वाले पत्रकार
आज क्यूँ है तुम्हारी स्क्रीन सफ़ेद?
अरे! शर्म करो सब,
ये आतंकवाद है,ये किसी के हमदर्द नहीं
क्या भारत,क्या अमरीका,क्या सीरिया क्या श्रीलंका?
सब को ले चुका अपनी चपेट में
कल हिन्दू, आज क्रिश्चन, कल सिक्ख और फिर मुस्लिम!
न तो अमन पसन्द है और न चमन पसन्द है।
ये किसी के नहीं हैं इन्हें बस खून पसन्द है।
लाशों की ढेर पसन्द है।
कर देगा इस जहाँ को बर्बाद
क्यूंकि ये है आतंकवाद!

और क्या कहूँ?
क्या करूँ मैं सवाल!
कौन दे सकता है भला
इन प्रश्नों का सटीक जवाब?
है आपके पास?
नहीं तो फिर मानवता के लिए ही सही
इस मासूम में अपने प्रिय का अक्स देखकर
श्रद्धा के दो बूंद आँसू जरूर दें।
और भर ले एक आग हृदय में
संकल्प ले आतंकवाद के खात्मे का
यही इसकी श्रद्धांजलि होगी।

©पंकज प्रियम

550. मणिकर्णिका


झाँसी की वो रानी थी

काशी की वो मणिकर्णिका,.... रानी लक्ष्मीबाई थी।
विठुर से लेकर झाँसी तक, गोरों को धूल चटायी थी।।

मोरोपन्त की मनु दुलारी, पेशवा प्यारी छबीली थी।
तात्या टोपे की वो शिष्या, जिद करती हठीली थी।।

आज़ादी की प्रथम लड़ाई, करने की उसने ठानी थी।
लड़ती रही अंग्रेजों से वह, झाँसी की महारानी थी।।

शस्त्र-शास्त्र में थी पारंगत, वीर ज्ञानी अभिमानी थी
अदम्य साहस परिचय देती, वो बड़ी स्वाभिमानी थी।।

आज़ादी की ख़ातिर उसने, जीवन दाँव लगाया था।
शर्तों की वह शादी थी, मरकर भी साथ निभाया था।।

पीठ में लेकर दामोदर को, जब तलवार उठायी थी।
गाजर-मूली सा काटा सर, रणचण्डी बन आयी थी।।

धधक रही थी ज्वाला दिल में, मौत को न राजी थी।
घोड़ा अगर न थकता उसका, जीती उसने बाजी थी।।

आख़िरी दम तक लड़ी लड़ाई, हार कहाँ वो मानी थी।
थर्रा उठी तब ब्रिटिश हुकूमत, झाँसी की वो रानी थी।।

© पंकज प्रियम

5.5.2019
गिरिडीह, झारखंड

549. ग़लतफ़हमी

ग़लतफ़हमी में ही अक्सर, रिश्ते टूट जाते हैं
बिखर जाते सभी नाते,...अपने छूट जाते हैं।

कभी नफ़रत नहीं करना, चाहत रंग तू भरना
भुलाकर रंजिशें सारी, दिलों में प्रेम ही रखना।

शिकायत हो अगर कोई, खुल के बात कर लेना
कभी दिल में दबाकर तुम, नहीं बर्बाद कर लेना।

भले मतभेद हो जाए, कभी मनभेद नहीं करना।
मनमुटाव अगर हो तो, नहीं मन मैला तू करना।

दिलों की दूरियां अक्सर, दिलों को तोड़ देती है।
सफ़र जीवन में ये अक्सर....तन्हा छोड़ देती है।

©पंकज प्रियम

.....................................................................

Tuesday, April 9, 2019

544.गद्दारों की बोली

गद्दारों की टोली

निकल पड़ी फिर से जयचंदो की टोली है
सुनो इनकी कैसी ये देशविरोधी बोली है।

पाक की मेहबूबा रोई,अब्दुल्ला भन्नाया है
आतंकी आका को अपना दर्द सुनाया है।

घर में रहके जो दुश्मन की ख़ातिर रोता है
ऐसे नमक हरामों का कहाँ जमीर होता है।

सुनो दिल्ली वालों! तूने क्यूँ मौन साधा है?
आतंकवाद मिटाने का किया तूने वादा है।

देशविरोधी नारों में खुद को जिसने ढाला है
हुई हिम्मत कैसे इनकी, क्यूँ इनको पाला है?

कुचल डालो फन आस्तीन में छुपे साँपों का
बहुत भर गया है घड़ा अब इनके पापों का।

देना होगा मुँहतोड़ जवाब, ऐसे मक्कारों को
दुश्मन से पहले मारो, देश में छुपे गद्दारों को।

इनके ही शह पर चलती सरहद पर गोली है
आतंकी चंदो से भरती इनकी सदा झोली है।

©पंकज प्रियम
09/04/2019

Monday, April 8, 2019

542.महाराणा प्रताप

पढ़ी किताबों में हमने, जिनकी अमर कहानी थी
हल्दीघाटी की माटी में, बहती वीर बलिदानी थी।

मुगलों के आगे जब सबने, था रण छोड़ दिया।
अकेले महाराणा ने तब जवाब मुँह तोड़ दिया।

आज़ादी का दीवाना, माटी-मुल्क मतवाला था
हवा से बातें करता चेतक, लहू पीता भाला था।

शौर्य-पराक्रम के आगे, अकबर भी घबराता था
वो प्रताप रणकौशल से, महाराणा कहलाता था।

सबकुछ खोकर भी उसने, कभी हार न मानी थी।
घास की रोटी खाकर भी, लड़ी युद्ध मैदानी थी।

©पंकज प्रियम

Sunday, March 17, 2019

536.सत्य अटल

सत्य अटल

क्या कहूँ?
कैसे कहूँ?
निःशब्द हो गए
हैं ये लब मेरे।
कहूँ भी तो
किससे कहूँ
कबतलक मैं चुप रहूँ।
ये सांसों का पहरा
ये दिल की धड़कन
जाने थम जाए कब
नहीं कुछ भी नहीं
कुछ नहीं है जीवन
बस मृत्यु ही है सत्य अटल।
लोगों का आना-जाना
पलना-बढ़ना-चढ़ना
देखना और दिखाना।
है नजरों का धोखा केवल
बस मृत्यु ही है सत्य अटल।
ये दुनियां, ये दौलत
ये चाहत, ये शोहरत
कुछ भी न साथ जाए
रहता है तो बस नाम तेरा
दिलों में बसता है काम तेरा
बाकी सबकुछ धोखा है केवल
बस मृत्यु ही है सत्य अटल।

©पंकज प्रियम

Wednesday, February 27, 2019

533.करारा जवाब

करारा जवाब 

आतंकी को क्या खूब, दिया जवाब करारा है .
कल घुसकर मारा था ,अब घुसपैठ पे मारा है,.

सुन लो पाकिस्तान, अब तेरी औकात बताएँगे.
धरती पे बम मारा, अम्बर से भी मार गिराएंगे.
नहीं मिलेगी जमी तुझे, न आसमां तेरा होगा,
तिरंगा तेरी छाती पर, देखना आज फहराएँगे.
मत भूलो तेरे हर जर्रे पर पहला हक हमारा है.
कल घुस कर मारा था .....

नापाक इरादों पर तेरे , पानी फेर हम जाएँगे.
पानी -पानी कर देंगे और बूंद -बूंद तरसाएंगे.
न दफन को कब्र मिलेगी ,न ही कफन मिलेगा,
जल जाओगे जिन्दा , जो शोले हम बरसाएंगे.
धुल चटाई है हमने

,जब भी तुमने ललकारा है.
कल घुस कर मारा था ....
आतंकी को क्या खूब दिया जवाब करारा है .
कल घुसकर मारा था ,अब घुसपैठ पे मारा है
@पंकज प्रियम 

532.तिरंगा पाक में फहराना है

तिरंगा पाक में फहराना है

कहा था प्रतिकार करेंगे, हर सीमा को पार करेंगे।
पुलवामा का लेंगे बदला, घर में घुसकर वार करेंगे।।

किया पीठ पर तुमने हमला,हम सीने पे वार करेंगे।
दो टुकड़ों से बाज न आये, अब टुकड़े चार करेंगे।।

जब भी तुमने छेड़ा है, कब हमनें तुमको छोड़ा है।
हरदम हमने धूल चटाई, सर पे चढ़ सर फोड़ा है।।

कह कर हमने वार किया,घर में घुसकर मार दिया।
चालीस जवानों के बदले,सैकड़ों का संहार किया।।

शौर्य पराक्रम का देखो, फिर डंका हमने बजाया है।
रावण के गढ़ में चढ़ , फिर लंका हमने जलाया है।।

मिराज की जो मार दिखाई, यह तो केवल झाँकी है।
राफेल करेगा जो तांडव, वह पूरी पिक्चर बाकी है।।

सलाम है वीर जवानों को,अलबेलों को मस्तानों को।
जान हथेली पर रखकर, सीमा पे लड़ते दीवानों को।।

धधक रही है ज्वाला दिल में,लहू रगों में खौल रहा है।
मिटा दो पाक को नक्शे से,बच्चा-बच्चा बोल रहा है।।

सुन ले तू अब पाकिस्तान,बदल गया अब हिंदुस्तान।
पीठ पे जो तुम वार करोगे, चढ़ छाती ले लेंगे जान।।

बन्द करो तुम आतंकवाद, वरना कर देंगे हम बर्बाद।
अगर कश्मीर को छेड़ोगे, कब्जा लेंगे इस्लामाबाद।।

बहुत बनाया कफ़न तिरंगा, अब इसको लहराना है।
दुश्मन की छाती पे चढ़कर, पूरे पाक में फ़हराना है।।

©पंकज प्रियम

Monday, February 18, 2019

527.कब तलक

कब तलक ये कब तलक ? कब तलक हाँ कब तलक 

कब तलक ये दृश्य दिखेगा,रक्त बहेगा कब तलक?
वीर जवानों की कुर्बानी,ये देश सहेगा कब तलक?
दुधमुँहे देते मुखाग्नि, पिता के कांधे पुत्र  का शव,
माँ की आँखे पथरायी, सुहाग  मिटेगा कब तलक?

हर ताबूत की शौर्य कथा है ,कहती एक कहानी है
एक गांव की मीठी है यादें,रिश्तों की एक निशानी है
माँ के आँचल का टुकड़ा, बहन की राखी का धागा
पत्नी की आंखों से आँसू,  बहता रहेगा कब तलक?

जान तिरंगे में लिपटी, ताबूत में सिमटी सांस यहाँ
खामोश पड़ी है वीर जवानी, ले हमसे आस यहाँ।
बलिदान हमारा व्यर्थ न हो, कुछ ऐसा संकल्प करो
शांति-वार्ता और संयम की बात करेगा कब तलक?

हर सीमा को तुम पार करो, हाथों को तलवार करो
घर में घुसकर दुश्मन की छाती पे चढ़कर वार करो।
लहू रगों में खौल रहा है, बच्चा-बच्चा बोल रहा है
नहीं रुको अब कूच करो, यूँ सब्र करेगा कब तलक?
©पंकज प्रियम

Saturday, February 16, 2019

525. रणभूमि में रण

रणभूमि में रण होगा

ना निंदा ना कोई अब प्रण होगा
सीधे रणभूमि में अब रण होगा।
जर्रा-जर्रा थर्राएगा रे पाक तेरा
तुझसे युद्ध इतना भीषण होगा।

जवानों का जितना रक्त बहा है
हर कतरे का हिसाब देना होगा
तेरे नापाक इरादों का आतंकी
अब मुंहतोड़ जवाब देना होगा।

बहुत कर लिया अब बातचीत
निर्णय तो अंतिम करना होगा
दुश्मन के घर में सीधे घुसकर
नेस्तनाबूद अब करना होगा।

बोल रहा है भारत का जनगण
खौल रहा है रक्त का कणकण
फैसला तो अब इस क्षण होगा
बात नहीं कोई अब रण होगा।

©पंकज प्रियम
16/02/2019

Sunday, February 10, 2019

520.बीज मुहब्बत

बीज मुहब्बत

किसी उदास चेहरे को खिला
रोज तुम रोज डे मना लेना।
किसी बिछड़े को तुम मिला
बेशक़ प्रपोज़ डे मना लेना।

कभी भूखे को दो कौर खिला
फिर चॉकलेट डे तू मना लेना।
अनाथ बच्चे को खुशी दिला
टेडी बियर डे तुम मना लेना।

बूढ़े बाप को कभी गले लगा
बेशक़ हग डे तुम मना लेना।
खुद से वफ़ा का कर  वादा
फिर प्रॉमिस डे तू कह लेना।।

जिसने तुझको है जन्म दिया
उस माँ का तू वंदन कर लेना
जिसने तुझको है धन्य किया
उस माटी का चन्दन कर लेना।

मना लेना फिर प्रणय दिवस
वेलेंटाइन जम के मना लेना।
रख के मर्यादा संस्कारों का
बीज मुहब्बत बिखरा देना।

है प्यार हमारा युग युग का
डे कल्चर का मोहताज़ नहीं।
रंग सजा लो चाहे जितना
बन सकता ये सरताज नहीं।

©पंकज प्रियम

Saturday, February 9, 2019

519.वर दे

वर दे

वर दे! माँ भारती तू वर दे
अहम-द्वेष तिमिर मन हर
शील स्नेह सम्मान भर दे।
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।
बाल अबोध सुलभ मन
अविवेक अज्ञान सब हर ले
जड़ मूढ़ अबूझ सरल मन
बुद्धि विवेक विज्ञान कर् दे।
अनगढ़ अनजान अनल मन
सत्य असत्य का ज्ञान भर दे।
नव संचार विचार नव नव मन
नव प्रकाश नव विहान कर दे।
वर दे! माँ भारती तू वर दे।

   © पंकज भूषण पाठक"प्रियम्

Friday, February 8, 2019

518. इश्क़ झमाझम

इश्क़ झमाझम

मौसम का ये प्यार देखो।
अम्बर का इज़हार देखो।
इश्क़ झमाझम बरसा है
वसुधा का इक़रार देखो।

घटाटोप घनघोर घटाएं
सनसनाती सर्द हवाएं
टिप-टिप बूंदे बरस रही
दरस को आंखे तरस रही
दिल हुआ बेक़रार देखो।
मौसम का ये प्यार देखो।

दिल से दिल की बात हुई
बिन मौसम बरसात हुई।
तुम भी अब आ जाओ
मुझको गले लगा जाओ
प्रियम का इंतजार देखो।
मौसम का ये प्यार देखो।

©पंकज प्रियम
Happy Propose Day
#झमाझम बसन्त

Wednesday, January 23, 2019

511.देश हमारा

सबसे न्यारा-सबसे प्यारा, भारत देश हमारा।
आसमां से ऊँचा परचम, देता सन्देश हमारा।
कुर्सी बदली,नेता बदले, सदा बुलन्द सितारा
विश्वविजयी गौरवशाली रहा ये अतीत हमारा।
राजतंत्र ने इतिहास गढ़ा,लगा सदा जयकारा।
आज़ादी के बाद हुआ गणतंत्र राष्ट्र ये हमारा।
गंगा-जमुनी संस्कृति, वसुधैव कुटुम्ब का नारा
शान से लहराता तिरंगा, बढ़े सम्मान हमारा।
हिन्दू-मुस्लिम,सिक्ख-ईसाई का है भाईचारा।
सदा गर्व से खड़ा हिमालय, रक्षक ये हमारा।
©पंकज प्रियम

Wednesday, January 16, 2019

506.सच कहाँ होते हैं ख़्वाब

पढ़ डाली मैंने
वो सारी क़िताब
जिसमें भी लिखा था
सच_होते_हैं_ख़्वाब।
देखने मैं भी निकल पड़ा
रास्ते में एक बालक मिला
कचरों की ढेर पर खड़ा
कचरों को चुन रहा था
अपनी किस्मत को बुन रहा था।
उसने भी देखा था स्कूल का ख़्वाब
लेकिन खरीद नहीं सका इक क़िताब।
आगे बढ़ा तो देखा सड़क किनारे
दो बुजर्ग बैठे भूखे तड़पते हुए
घर से बेघर ठंड में ठिठुरते हुए
उन्होंने भी कभी देखा था
बच्चों में बुढ़ापे की लाठी का ख़्वाब
लेकिन उम्र की आखिर दहलीज़ पर
अपने ही बच्चों से मिल गया जवाब।
आगे बढ़ा ही था कि कदम रुक गए
पैरों के नीचे यूँ ही बिखरे पड़े थे
आलू,टमाटर और प्याज़
वहीं बैठा था किसान देकर सर पे हाथ
जी तोड़ मेहनत के बाद
फ़सल बेचने आया था
कर्ज़ चुकाकर बचे पैसों से
बेटी की शादी का देखा था ख़्वाब।
लेकिन इतने भी न मिले दाम
किराया भी होता वसूल
सब्जियों की तरह विखर गए उसके भी ख़्वाब।
गाँधी जी ने भी देखा था
सोने की चिड़ियाँ का ख़्वाब
लेकिन आज देखो हर तरफ
मन्दिर मस्जिद के नाम हो रहा फ़साद
अब मेरी भी हिम्मत देने लगी जवाब
कितना और किस-किस का लूं हिसाब
कहाँ पूरे होते हैं आम लोगों के ख़्वाब।
हां सच होते हैं न!
पाँच वर्ष में नेताओं के ख़्वाब
महीनों में ही अफसरों के ख़्वाब
टैक्स चुराते पूंजीपतियों के ख़्वाब
बैंकों को लूटकर विदेश भागते
मोदी-माल्या और निरवों के ख़्वाब।
हम तो भोले-भाले हैं ज़नाब
हमारे कहाँ सच होंगे ख़्वाब!

©पंकज प्रियम

Friday, January 11, 2019

505.हे राम!तुम्हें आना होगा


हे राम तुम्हें फिर आना होगा।
खुद अधिकार जताना होगा।
नहीं मिलेगा इंसाफ तुम्हें भी
खुद हथियार उठाना होगा।

याद है वो सागर की ढिठाई
पूजा-प्रार्थना काम न आयी
जब कुपित हो उठाया बाण
खुद सागर ने थी राह दिखाई।
वही रूप तुम्हें दिखाना होगा
हे राम तुम्हें फिर आना होगा।

अब मर्यादा सब छोड़ो तुम
घर से नाता अब जोड़ो तुम
बहुत हो गया केस मुकदमा
शिव-धनुष अब तोड़ो तुम।
क्रोध परशुराम जगाना होगा
हे राम तुम्हें फिर आना होगा।
कोर्ट की तारीख़ों के चक्कर।
जनता पीस जाती है अक्सर।
तुम तो हो मर्यादा पुरुषोत्तम,
बन जाओगे तुम घनचक्कर।
खुद अब इंसाफ़ सुनाना होगा
हे राम तुम्हें अब आना होगा।
जीव जानवर हाथ मिलाए
सब असुरों को मार भगाए
जीत कर भी सोने की लंका
तुम अवध में लौटकर आये।
फिर वही जीत दुहराना होगा
हे राम तुम्हें फिर आना होगा।
जिस घर में तुमने जन्म लिया
दशरथ को तुमने धन्य किया
किलकारी जिसमें गूँजी थी
जिस घर में सबने पुण्य किया
फिर मन्दिर वहीं बनाना होगा।
हे राम तुम्हें फिर आना होगा।
©पंकज प्रियम
10.1.2018

Sunday, December 16, 2018

482.गुलाबी धूप


सुनो मेरे दिल की बात
सर्दी का ये शुभ प्रभात
और ये तेरा मेरा साथ
क्यूँ करे सर्दी की बात
जब हाथों में हो तेरा हाथ।
है याद मुझे वो दिन सुहाना
मखमली धूप बनकर आना
हौले-हौले पीछे से वो तेरा
मुझसे आकर लिपट जाना।
याद आती है वो सारी बात
जब हाथों में हो तेरा हाथ।
सुनहरी किरणों से सजी
गुलाबी धूप हो या फिर
कड़कड़ाती-सी सर्द रात।
क्यूँ करना ओस की बात
जब हाथों में हो तेरा हाथ।
प्यार हमारा जब है गहरा
गर्म साँसों का जब है पहरा
सर्द पवन फिर कब है ठहरा
तो क्यूँ करें पछुआ की बात
जब हाथों में हो तेरा हाथ।
©पंकज प्रियम

480.उनकी क्या ख़ता

ऐ ठंड!

ऐ ठंड ! अब और न सता
तेरा क्या मकसद है?बता!

मेरी छोड़ो, सह लूँगा मैं
लेकिन उनकी तो सोचो
सड़क किनारे जो हैं सोये
आखिर उनकी क्या खता?
ऐ ठंड अब और न सता।

भर दिन कचरों को चुनते
रात राह नजरों को बुनते
अख़बार ओढ़कर जो सोते
आख़िर उसकी क्या ख़ता?
ऐ ठंड! अब और न सता।

रेल की पटरियों के किनारे
खेत में फसलों को निहारे
गरीब किसानों की सोचो
आख़िर उनकी क्या ख़ता?
ऐ ठंड! अब और न सता।

गांव का वो अलाव कहाँ
खलिहान का पुआल कहाँ
एसी के बंद कमरों में भी
घुटन का तुझको है पता?
ऐ ठंड!अब और न सता।

दिसम्बर की ये सर्द रात
बर्फीली हवा की सौग़ात
सरहद पे जो है वीर खड़ा
आख़िर उनकी क्या ख़ता?
ऐ ठंड !अब और न सता।

©पंकज प्रियम

Thursday, December 13, 2018

475.प्यारा भारत


*******************************************
तड़प रहा था देश हमारा
गुलामी की जंजीरों में।
मिलके दिलाई आज़ादी
लहू बहाकर सब वीरों ने।
हुए शहीद वो वीर सपूत
इतिहास रचा तकदीरों में।
देखा  बदलता युग सारा
गाथा खूब गढ़ा फकीरों ने।
सबसे प्यारा है मेरा भारत
अलग पहचान है तस्वीरों में।
©पंकज प्रियम