ऐ ठंड!
ऐ ठंड ! अब और न सता
तेरा क्या मकसद है?बता!
मेरी छोड़ो, सह लूँगा मैं
लेकिन उनकी तो सोचो
सड़क किनारे जो हैं सोये
आखिर उनकी क्या खता?
ऐ ठंड अब और न सता।
भर दिन कचरों को चुनते
रात राह नजरों को बुनते
अख़बार ओढ़कर जो सोते
आख़िर उसकी क्या ख़ता?
ऐ ठंड! अब और न सता।
रेल की पटरियों के किनारे
खेत में फसलों को निहारे
गरीब किसानों की सोचो
आख़िर उनकी क्या ख़ता?
ऐ ठंड! अब और न सता।
गांव का वो अलाव कहाँ
खलिहान का पुआल कहाँ
एसी के बंद कमरों में भी
घुटन का तुझको है पता?
ऐ ठंड!अब और न सता।
दिसम्बर की ये सर्द रात
बर्फीली हवा की सौग़ात
सरहद पे जो है वीर खड़ा
आख़िर उनकी क्या ख़ता?
ऐ ठंड !अब और न सता।
©पंकज प्रियम
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