Sunday, May 5, 2019

550. मणिकर्णिका


झाँसी की वो रानी थी

काशी की वो मणिकर्णिका,.... रानी लक्ष्मीबाई थी।
विठुर से लेकर झाँसी तक, गोरों को धूल चटायी थी।।

मोरोपन्त की मनु दुलारी, पेशवा प्यारी छबीली थी।
तात्या टोपे की वो शिष्या, जिद करती हठीली थी।।

आज़ादी की प्रथम लड़ाई, करने की उसने ठानी थी।
लड़ती रही अंग्रेजों से वह, झाँसी की महारानी थी।।

शस्त्र-शास्त्र में थी पारंगत, वीर ज्ञानी अभिमानी थी
अदम्य साहस परिचय देती, वो बड़ी स्वाभिमानी थी।।

आज़ादी की ख़ातिर उसने, जीवन दाँव लगाया था।
शर्तों की वह शादी थी, मरकर भी साथ निभाया था।।

पीठ में लेकर दामोदर को, जब तलवार उठायी थी।
गाजर-मूली सा काटा सर, रणचण्डी बन आयी थी।।

धधक रही थी ज्वाला दिल में, मौत को न राजी थी।
घोड़ा अगर न थकता उसका, जीती उसने बाजी थी।।

आख़िरी दम तक लड़ी लड़ाई, हार कहाँ वो मानी थी।
थर्रा उठी तब ब्रिटिश हुकूमत, झाँसी की वो रानी थी।।

© पंकज प्रियम

5.5.2019
गिरिडीह, झारखंड

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