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Thursday, December 19, 2019

762. देश है उसका

देश है उसका
लगाये आग नफऱत की, गलत परिवेश है उसका,
जलाये देश को जो भी, गलत उद्देश्य है उसका।
अगर सहमत नहीं है तो, ख़िलाफ़त वो करे बेशक़-
मगर जो देश द्रोही है, नहीं यह देश है उसका।
पृथक भाषा पृथक बोली, पृथक परिवेश है अपना,
पृथकता में सदा मिलजुल, यही संदेश है अपना।
नहीं हिन्दू नहीं मुस्लिम, नहीं कोई सिक्ख ईसाई-
करे जो प्यार भारत से,  उसी का देश है अपना।।
©पंकज प्रियम
19.12. 2019

Wednesday, December 18, 2019

761. दिल दिमाग

दिल vs दिमाग
मुल्क हो या महबूब, मुहब्बत वही कर पाता है,
छोड़कर जो ज्ञान गंगा दिल में उतर जाता है।
ये दिमाग तो हरवक्त साज़िशों में फँसा रहता,
मगर दिल को तो केवल प्यार नज़र आता है।।
©पंकज प्रियम

Monday, December 16, 2019

756. लफ्ज़ मुसाफ़िर

मुसाफ़िर लफ्ज़ों का
हवाओं से जरा कह दो, अदब से वो गुजर जाये,
जहाँ पर जल रहा दीपक, जरा मद्धम उधर जाये।
तमस गहरा निशा काली, जहाँ पे खौफ़ हो खाली-
जले दीपक नहीं उस घर, बताओ तो किधर जाये।

सिपाही हूँ कलम का मैं, कलम से वार करता हूँ,
कलम को छेड़कर हरदम, उसे हथियार करता हूँ।
नहीं है खौफ़ मरने का, अलग अंदाज़ जीने का-
समय से जंग है लेकिन, समय से प्यार करता हूँ।।

दिले जज़्बात लिखता हूँ, सही हालात लिखता हूँ,
नज़र में जो हकीकत हो, वही दिनरात लिखता हूँ।
ख़ता मेरी यही इतनी, कलम से छेड़ता लेकिन-
जो कहने से कोई डरता, वही मैं बात लिखता हूँ।।

मुसाफ़िर हूँ मैं लफ्ज़ों का, सफ़र अल्फ़ाज़ करता हूँ,
ग़ज़ल कविता कहानी से, सहर आगाज़ करता हूँ।
नहीं मशहूर की चाहत, नहीं हसरत बड़ी दौलत-
प्रियम हूँ मैं मुहब्बत का, दिलों पे राज करता हूँ।।

प्रियम हूँ मैं..

मुसाफ़िर,अल्फ़ाज़ों का, 

खुद से बंधा नियम हूँ मैं।

लफ़्ज़ समंदर,लहराता, 

शब्दों से सधा,स्वयं हूँ मैं।

संस्कृति, संस्कारों का

 खुद से गढ़ा  नियम हूँ मैं।

साहित्य सृजन,सरिता

प्रेम-पथिक,"प्रियम" हूँ मैं।

कमल का फूल खिलता

पाठक पंकज भूषण हूँ मैं।

औरों में,खुशी बिखेरता

कवि-लेखक"प्रियम" हूँ मैं।

सरस्वती की पूजा करता

मां सर्वेश्वरी पुत्र प्रियम हूँ मैं

कागज,कलम में ही जीता

श्यामल पुत्र "प्रियम" हूँ मैं।

अन्वेषा-आस्था कृति रचता

किशोरी पति प्रियम हूँ मैं।

मित्र प्रेम समर्पित करता

प्रियतम सखा प्रियम हूँ मैं।

©पंकज प्रियम


Sunday, December 15, 2019

755. दिल्ली का हाल

केजरीवाल देख लो

क्या तेरे विधायक ने किया हाल देख लो,
जल रही है दिल्ली, केजरीवाल देख लो।
कानून का विरोध है, क्या दंगा करोगे?
नफ़रत की सियासत का बुराहाल देख लो।
©पंकज प्रियम

बंगाल के बाद अब दिल्ली? कौन है आग लगानेवाला?
कहाँ है सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग?
संज्ञान लो

Friday, December 13, 2019

752. प्याज़

प्याज़
कहीं पे अड़ रहा है प्याज, कहीं पे सड़ रहा है प्याज़,
जमाखोरों के ही कारण, नज़र में गड़ रहा है प्याज़।
शतक के पार कीमत है, यही अब तो हक़ीक़त है-
गरीबों का कभी जो था, उन्हीं पे पड़ रहा है प्याज़।।

©पंकज प्रियम

751. हालात लिखता हूँ

बात लिखता हूँ
दिले जज़्बात लिखता हूँ, सही हालात लिखता हूँ,
नज़र जो भी हक़ीकत हो, वही दिनरात लिखता हूँ।
ख़ता मेरी यही इतनी, कलम को छेड़ता लेकिन-
जो कहने से सभी डरते, वही मैं बात लिखता हूँ।।
©पंकज प्रियम

Wednesday, December 11, 2019

746. विभाजन

विभाजन
विभाजन गर नहीं होता, कभी यह बिल नहीं आता,
ख़ता लम्हों में जो करता, सजा सदियों में वो पाता।
बदलना भी जरूरी है, समय के साथ सबकुछ जब-
अगर कानून हो अंधा, किसी के मन नहीं भाता।।
©पंकज प्रियम
#CAB

744.दीपक

दीपक
हवाओं से जरा कह दो, अदब से वो गुजर जाये,
जहाँ पे जल रहा दीपक, जरा मद्धम उधर जाये।
तमस गहरा निशा काली, जहाँ अज्ञानता खाली-
वहाँ दीपक नहीं जलता, बताओ तो किधर जाये।।
©पंकज प्रियम
11.12.2019

Tuesday, December 10, 2019

742. मुहब्बत बीज


मुक्तक

शशि की गोद में सोया, शशक है नींद में खोया,
नहीं गिरने की है चिन्ता, तभी तो प्रेम से सोया।
धवल जो रंग दोनों का, निशा तारे सजा बैठी-
चमकती चाँदनी मद्धम, मुहब्बत बीज है बोया।
©पंकज प्रियम

741. चूड़ियाँ

चूड़ियाँ
मुक्तक
पहन के चूड़ियां नारी, सदा शृंगार करती है,
हरी चूड़ी हरा सावन, पिया से प्यार करती है।
सुहागन की भरी हाथें, चमकता सूर्य वो माथे-
खनकती चूड़ियाँ जब है, समझ इज़हार करती है।।
©पंकज प्रियम

740. जिया मैंने

दुवाओं को जिया मैंने, ज़हर को भी पिया मैंने,
मिले जो ज़ख्म नफऱत के, मुहब्बत से सिया मैंने।
हवाओं से उलझकर भी, सदा उड़ता रहा नभ पे-
ग़ज़ल कविता कहानी से, तुझे चाहत दिया मैंने।।
©पंकज प्रियम

739. मैंने

मैंने

दुआओं को जिया मैंने, दवाओं को पिया मैंने,
जख़्म जो भी दिये तूने, मुहब्बत से सिया मैंने।
ग़ज़ल कविता कहानी में, सभी ज़ख्मो निशानी में
तुम्हारा नाम लिखकर के, तुझे चाहत दिया मैंने।।

©पंकज प्रियम
10.12.2019

Friday, December 6, 2019

732. मरना जरूरी है

मरना जरूरी है
1222 1222 1222 1222
यहाँ इंसाफ़ की ख़ातिर, सदा लड़ना जरूरी है,
मिले इंसाफ़ जो सबको, हमें अड़ना जरूरी है।
लटकता है जहाँ हरदम, मुकदमा कोर्ट में वर्षों-
त्वरित इंसाफ़ पाने को, सदा भिड़ना जरूरी है।।

किया अपराध है जिसने, उसे डरना जरूरी है,
बलात्कारी दुराचारी, उसे मरना जरूरी है।
अधर्मी को सज़ा देना, यही तो धर्म बतलाता-
अगर इंसाफ में देरी, यही करना जरूरी है।।
©पंकज प्रियम

Friday, November 15, 2019

721. इश्क़ रूहानी


मुक्तक सृजन
2122 2122
1
कर मुहब्बत लिख कहानी,
क्या मिलेगी फिर जवानी।
चार दिन की ज़िन्दगी में-
रोज जी ले जिन्दगानी।।
2
लिख फ़साना रख निशानी,
फिर कहाँ यह रुत सुहानी।
चार पल का है ये जीवन-
रोज करना कुछ तुफानी।।
3
हाँ कभी मत कर गुमानी,
खत्म हो जाती जवानी।
तन उधारी मन उधारी-
रख हमेशा आँख पानी।।
4
फिर भले हो दिल रूमानी
रख न रिश्ता जिस्म जानी।
राख बन जाता बदन यह-
इश्क़ हरदम कर रूहानी।।
©पंकज प्रियम

Wednesday, November 6, 2019

716. प्रदूषण का इलाज़


तुम्हें जीना अगर है तो, लगाओ पेड़ तुम प्यारे,
मिटाना है प्रदूषण तो, बचाओ पेड़ तुम सारे।
हवा-पानी और भोजन, धरा-अम्बर और जीवन-
बचाना है अगर इनको, लगाओ पेड़ खूब सारे।
©पंकज प्रियम

Tuesday, November 5, 2019

714. प्रदूषण

ज़हर
प्रदूषण तुम करोगे तो, कहर अब मार डालेगा।
हवा पानी प्रदूषित हो, ज़हर सब मार डालेगा।
अभी आगाज़ है ये सब, अगर जो तुम नहीं चेते-
तुम्हारा ही बसाया ये, शहर तब मार डालेगा।
©पंकज प्रियम


Monday, October 28, 2019

702. नाम


कोई गुमनाम मरता है,  कोई बदनाम करता है,
सफ़र-ऐ-जिंदगी में भी, कोई आराम करता है।
नहीं शिकवा किसी से हो, नहीं कोई शिकायत हो-
कदम मिलके बढ़ाये जो, वही तो नाम करता है।।

©पंकज प्रियम

Thursday, October 24, 2019

697.सियासी मंच

सियासी मुक्तक

लगाते तुम रहे नारा,..... पचहत्तर पार कर लेंगे,
अहम सर पे चढ़ाकर के, उसे हथियार कर लेंगे।
जमीनी कार्यकर्ता और।   नेता को भुलाकर के-
भगोड़े और दलबदलू से.....नैना चार कर लेंगे।।

सियासी मंच है ऐसा, .....स्वयं से रार कर लेंगे,
जहाँ हो स्वार्थ सिद्धि तो अरि से प्यार कर लेंगे।
यहाँ जनता जनार्दन है, उसे कमजोर जो समझा-
पड़ेगी चोट वोटों पर,    वही यलगार कर लेंगे।।

©पंकज प्रियम

Wednesday, October 23, 2019

695. दौलत


मुक्तक,
रदीफ़-दौलत
विधाता छंद
1222 1222 1222 1222
नहीं पैसा नहीं रुपया, नहीं गहना धनोदौलत,
मिले सम्मान जो हरपल, हकीकत में वही दौलत।
सभी दौलत सभी शोहरत,यहीं रह जाएगी हसरत-
मुहब्बत पा लिया तो फिर, समझ लो मिल गयी दौलत।।
©पंकज प्रियम

Sunday, October 20, 2019

693. याद

1222 1222, 1222   1222
मुझे तुम याद आओगे, नहीं तुम भूल पाओगे,
गुजारे साथ जो लम्हें, उन्हें क्या भूल पाओगे।
नहीं गुजरा हुआ कल हूँ, कभी वापस न आ पाऊँ-
करोगे याद जो मुझको, सभी को भूल जाओगे।।
©पंकज प्रियम