समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
1222 1222, 1222 1222 मुझे तुम याद आओगे, नहीं तुम भूल पाओगे, गुजारे साथ जो लम्हें, उन्हें क्या भूल पाओगे। नहीं गुजरा हुआ कल हूँ, कभी वापस न आ पाऊँ- करोगे याद जो मुझको, सभी को भूल जाओगे।। ©पंकज प्रियम
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