Friday, December 13, 2019

752. प्याज़

प्याज़
कहीं पे अड़ रहा है प्याज, कहीं पे सड़ रहा है प्याज़,
जमाखोरों के ही कारण, नज़र में गड़ रहा है प्याज़।
शतक के पार कीमत है, यही अब तो हक़ीक़त है-
गरीबों का कभी जो था, उन्हीं पे पड़ रहा है प्याज़।।

©पंकज प्रियम

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