समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
मुक्तक
शशि की गोद में सोया, शशक है नींद में खोया, नहीं गिरने की है चिन्ता, तभी तो प्रेम से सोया। धवल जो रंग दोनों का, निशा तारे सजा बैठी- चमकती चाँदनी मद्धम, मुहब्बत बीज है बोया। ©पंकज प्रियम
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