समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
मैंने
दुआओं को जिया मैंने, दवाओं को पिया मैंने, जख़्म जो भी दिये तूने, मुहब्बत से सिया मैंने। ग़ज़ल कविता कहानी में, सभी ज़ख्मो निशानी में तुम्हारा नाम लिखकर के, तुझे चाहत दिया मैंने।।
©पंकज प्रियम 10.12.2019
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