समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
दुवाओं को जिया मैंने, ज़हर को भी पिया मैंने, मिले जो ज़ख्म नफऱत के, मुहब्बत से सिया मैंने। हवाओं से उलझकर भी, सदा उड़ता रहा नभ पे- ग़ज़ल कविता कहानी से, तुझे चाहत दिया मैंने।। ©पंकज प्रियम
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