समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
कोई गुमनाम मरता है, कोई बदनाम करता है, सफ़र-ऐ-जिंदगी में भी, कोई आराम करता है। नहीं शिकवा किसी से हो, नहीं कोई शिकायत हो- कदम मिलके बढ़ाये जो, वही तो नाम करता है।।
©पंकज प्रियम
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