मुसाफ़िर लफ्ज़ों का
हवाओं से जरा कह दो, अदब से वो गुजर जाये,
जहाँ पर जल रहा दीपक, जरा मद्धम उधर जाये।
तमस गहरा निशा काली, जहाँ पे खौफ़ हो खाली-
जले दीपक नहीं उस घर, बताओ तो किधर जाये।
सिपाही हूँ कलम का मैं, कलम से वार करता हूँ,
कलम को छेड़कर हरदम, उसे हथियार करता हूँ।
नहीं है खौफ़ मरने का, अलग अंदाज़ जीने का-
समय से जंग है लेकिन, समय से प्यार करता हूँ।।
दिले जज़्बात लिखता हूँ, सही हालात लिखता हूँ,
नज़र में जो हकीकत हो, वही दिनरात लिखता हूँ।
ख़ता मेरी यही इतनी, कलम से छेड़ता लेकिन-
जो कहने से कोई डरता, वही मैं बात लिखता हूँ।।
मुसाफ़िर हूँ मैं लफ्ज़ों का, सफ़र अल्फ़ाज़ करता हूँ,
ग़ज़ल कविता कहानी से, सहर आगाज़ करता हूँ।
नहीं मशहूर की चाहत, नहीं हसरत बड़ी दौलत-
प्रियम हूँ मैं मुहब्बत का, दिलों पे राज करता हूँ।।
प्रियम हूँ मैं..
मुसाफ़िर,अल्फ़ाज़ों का,
खुद से बंधा नियम हूँ मैं।
लफ़्ज़ समंदर,लहराता,
शब्दों से सधा,स्वयं हूँ मैं।
संस्कृति, संस्कारों का
खुद से गढ़ा नियम हूँ मैं।
साहित्य सृजन,सरिता
प्रेम-पथिक,"प्रियम" हूँ मैं।
कमल का फूल खिलता
पाठक पंकज भूषण हूँ मैं।
औरों में,खुशी बिखेरता
कवि-लेखक"प्रियम" हूँ मैं।
सरस्वती की पूजा करता
मां सर्वेश्वरी पुत्र प्रियम हूँ मैं
कागज,कलम में ही जीता
श्यामल पुत्र "प्रियम" हूँ मैं।
अन्वेषा-आस्था कृति रचता
किशोरी पति प्रियम हूँ मैं।
मित्र प्रेम समर्पित करता
प्रियतम सखा प्रियम हूँ मैं।
©पंकज प्रियम
No comments:
Post a Comment