सियासी मुक्तक
लगाते तुम रहे नारा,..... पचहत्तर पार कर लेंगे,
अहम सर पे चढ़ाकर के, उसे हथियार कर लेंगे।
जमीनी कार्यकर्ता और। नेता को भुलाकर के-
भगोड़े और दलबदलू से.....नैना चार कर लेंगे।।
सियासी मंच है ऐसा, .....स्वयं से रार कर लेंगे,
जहाँ हो स्वार्थ सिद्धि तो अरि से प्यार कर लेंगे।
यहाँ जनता जनार्दन है, उसे कमजोर जो समझा-
पड़ेगी चोट वोटों पर, वही यलगार कर लेंगे।।
©पंकज प्रियम
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