समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
दीपक हवाओं से जरा कह दो, अदब से वो गुजर जाये, जहाँ पे जल रहा दीपक, जरा मद्धम उधर जाये। तमस गहरा निशा काली, जहाँ अज्ञानता खाली- वहाँ दीपक नहीं जलता, बताओ तो किधर जाये।। ©पंकज प्रियम 11.12.2019
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