Thursday, August 9, 2018

404.बिंदिया

बिंदिया

सजी माथे तेरी बिंदिया
उड़ाती है मेरी निंदिया।
चमकते चाँद पे सूरज सी
दहकती है तेरी बिंदिया।

हया की आग है बिंदिया
प्रेम का अनुराग है बिंदिया
रूप का श्रृंगार ये करती
नारी का सुहाग है बिंदिया।

नारी की सम्मान है बिंदिया
नारी अभिमान है बिंदिया
जिससे ये प्यार है करती
उसकी पहचान है बिंदिया।

सुर्ख लाल तेरी बिंदिया
खूब कमाल तेरी बिंदिया
बहुत बैचेन मुझे करती
सजी भाल तेरी बिंदिया।
©पंकज प्रियम

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