रोज सुनी सड़कों को ताकती
बूढ़ी मां की आँखे पथरायी है
घूंघट की आड़ से वो झांकती
बीवी की आँखे भी भर आई है।
बहना भी कब से है बैठी द्वार
राखी,कुमकुम सजाकर थाल।
बेसब्री से रोज हो रहा इंतजार,
कब आएगा इस घर का लाल।
सरहद से क्या सन्देशा आया
बस एक खबर को सब बेहाल
क्या युद्ध खत्म नहीं हो पाया
कब लौटेगा इस घर का लाल।
दुश्मन तो सारे वो मार गया
पर अपना जीवन हार गया
बहादुरी पर देश हुआ मुरीद
एक लाल फिर हुआ शहीद।
वर्षों बाद दीदार हो पाया है
कैसा सैलाब उमड़ आया है
क्या खूब परचम लहराया है
कफ़न पे तिरंगा फहराया है।
©पंकज प्रियम
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