अपलक इंतजार करती है आँखे
बन्द पलक प्यार करती है आँखे।
कभी जुबाँ जो खामोश हो जाती
दिल की हर बात कहती है आँखे।
अपनों के लिए तरसती है आँखे
अश्कों को लिए बरसती है आंखे
जो प्रियतम से वो चार हो जाती
जुगनू सी लिए हरसती है आँखे।
दिलों तक राह बनाती है आंखे
इश्क़ की चाह जगाती है आंखे
नैनों से ही सारी बात हो जाती
प्रेम की आग लगाती है आँखे।
गहरे समंदर लहराती है आँखे
नीले अम्बर गहराती है आँखे
जब अपनों की याद है आती
चुपके से भर आती है आँखे।
खामोश भी कर जाती है आँखे
यूँ जोश भी भर जाती है आँखे
नशीले जाम जब है छलकाती
मदहोश भी कर जाती है आँखे।
©पंकज प्रियम
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