दिन-बुधवार
तिथि-22/08/2018
विषय :नि:शब्द
विधा-अतुकांत कविता
भात भात कहते
जब कोई मासूम
भूख से तड़प तड़प
कर मर जाता है
तब सील जाते होंठ
लब निःशब्द हो जाता है।
फ़टी एड़ियों से
घिस घिसकर
पेट पीठ सटे
अंतड़ियों को
जब दिखलाता है।
सच कहूँ तब
लफ्ज़ निःशब्द हो जाता है।
द्रौपदियों का देख
रोज चीर हरण
भीष्म द्रोण खामोश
जब रह जाता है।
सच कहूँ तब
शब्द निःशब्द हो जाता है।
खुदा के घर पर
भी होते पापकर्म
हवस के जंजीरों में
सिसकते मासूमों का
देख कर दुष्कर्म
मर्म निःशब्द हो जाता है।
सरेआम स्त्रियों को
बीच राह करके नग्न
जब पुरुष मर्दानगी
अपनी दिखाता है।
खौल उठता है खून
लहू निःशब्द हो जाता है।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड
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