प्रेम
प्रेम का ढाई आखर होता बहुत सुहाना
फिर जाने क्यूँ दुश्मन है इसका जमाना।
छोड़ के जहाँ को भी चाहे इसे अपनाना।
फिर जाने .....
वो बदनशीब हैं,जिन्हें प्यार मिलता नहीं
वे खुशनशीब हैं,जिन्हें प्यार मिलता यहीं
इसके आगे सबको पड़ा है सर झुकाना
फिर जाने क्यूँ ...
शाह ने मुमताज की खातिर ताज बनाया
लैला की चाह में मजनू ने पत्थर खाया
किस्मत से ही होता है दिल आशिकाना
फिर जाने क्यूँ..
प्रेमी होते है खुदा के बन्दे कहते हैं ऐसा
हद से गुजर जाय जो इश्क होता है ऐसा
टूट जाये दिल मुश्किल फिर उसे बचाना
फिर जाने ...
अपनी हसरतों को कब्र में करके दफ़न
चलते हैं मुहब्बत में बांध सर पे कफ़न
सबके बस में नहीं ये दरिया पार जाना
फिर जाने....
मुहब्बत से पीर बना,इसी ने रचा संसार
खुदा भी तरसता पाने को सच्चा प्यार
है दुनिया का सबसे अनमोल नजराना
फिर जाने ...
----------पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
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