समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
गणेश चतुर्थी की ढेरों शुभकामनाएं
विघ्नहर्ता प्रथम पूज्य तुम,हे गजानन! अभी कहाँ हो? अज़ब गति है तेरी विनायक,कभी यहाँ हो,कभी वहाँ हो। हमारा तनमन तुझे ही अर्पण,कभी करा दो मुझे भी दर्शन बरस रही है तरस के नैना,दरस दिखा दो अभी जहाँ हो।
©पंकज प्रियम
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