तेल मुक्तक
1
हुआ पेट्रोल है मंहगा,कहाँ डीजल रहा सस्ता
लगाया वैट है इतना,बचा है अब कहाँ रस्ता
किया ये खेल कैसा है,लगाया तेल कैसा है?
खुले बाजार पे छोड़ा,किया हालत यहाँ खस्ता।
2
सबमें लगाया जीएसटी,तेल को तूने छोड़ा है
कम्पनी जीभर लूट रही,खुल्ला इसको छोड़ा है
नहीं जनता से लेना है,नहीं जनता को देना है
बेचारी पीस रही जनता,इस हाल पे छोड़ा है।
©पंकज प्रियम
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Tuesday, September 11, 2018
426.तेल मुक्तक
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