Thursday, September 27, 2018

436.सरकार

सरकार

कागज़ी जो घोड़ा दौड़ाए
हाथी को भी हवा उड़ाए
घोषणाओं की भरमार है
समझ लो यही सरकार है।

मंत्री,सन्तरी नेता अफ़सर
जनता को लगवाते चक्कर
उनके हितों की दरकार है
समझ लो यही सरकार है।

पूंजीवाद की बोली बोले
धनपशुओं के आगे डोले
गरीबों को बस फटकार है
समझ लो यही सरकार है।

योजनाएं तो बनती है खूब
ठेकेदारों की चलती है खूब
टेबल टेण्डर की जयकार है
समझ लो यही सरकार है।

आँकड़ों का बस होता खेल
अंडर टेबल का प्यारा मेल
चोर ही बन जाता सरदार है
समझ लो यही सरकार है।

नहीं दोष सिर्फ सरकारों का
नहीं दोष क्या,पहरेदारों का
निगरानी का भी अधिकार है
आखिर हमारी ही सरकार है।

अच्छे नेता को चुनना होगा
खुद अपना खेत बुनना होगा
समय की सदा यही पुकार है
अपने हाथों में ही सरकार है।

©पंकज प्रियम

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