Friday, September 7, 2018

426.मुल्क और मीत

मुल्क और मीत
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मितवा मुझे तो जाना होगा,
इस दिल को समझाना होगा 
अपने वतन का साथ निभाने,
अपनों का अब हाथ बंटाने. 
सरहद पे मुझे जाना होगा।
मितवा....।


मितवा अभी तुम आये हो
अंखियन ख़्वाब बसाये हो
थे आतुर तुम आने को
क्यूँ आतुर फिर जाने को?
ये बात मुझे तो बताना होगा।
मितवा तुझे क्यूँ जाना होगा. 


ये मुल्क ही मेरा मीत सजन रे 
रग-रग में बसा गीत सजन रे .
एक नया संगीत बनाने 
देशप्रेम का भाव जगाने.
सरगम सुर से सजाना होगा।
मितवा मुझे तो जाना होगा,.


हाथ की मेंहदी छूटी नहीं रे  
रात खुमारी टूटी नही रे 
भोर हुआ कब नींद जगाने 
क्यूँ आतुर हो विरहा पाने 
मुझको ये समझाना होगा
मितवा तुझे क्यूँ जाना होगा. 


सीमा पर जब चलती गोली
खेलती हमसे खून की होली
रंग ख़ुशी का उसमे मिलाने 
सबके घर एक दीप जलाने
सरहद आग जलाना होगा. 
मितवा मुझे तो जाना होगा,


कुहू -कुहू जब कोयल बोले,
कुहक-कुहक के जियरा डोले
राग मिलन की  फिर से जगाने 
आग विरह की दिल से बुझाने
सागर ज्वार उठाना होगा।
मितवा तुझे क्यूँ जाना होगा. 


सरहद पे जब जंग छिड़ी हो
दुश्मन दो-दो हाथ भिड़ी हो
वक्त नहीं कुछ समझाने को 
रिपुदल मार गिराने को 
शस्त्र मुझे ही चलाना होगा।
मितवा मुझे तो जाना होगा,


ठीक है जाओ लेकिन सुन लो,
बीज मुहब्बत कुछ तो बुन लो. 
प्यार के फूल खिलाने को 
खुद से खुद को मिलाने को 

खाओ कसम तुम मेरे सजन रे 
लौट के फिर तुम्हें आना होगा।
मितवा...
©पंकज प्रियम

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