Saturday, September 1, 2018

422.मुक्तक

मुक्तक

सजा बाजार है देखो,यहाँ जिंदा लाशों का
बड़ा लाचार है देखो,लगा पहरा सांसों का
नहीं आज़ाद है कोई,नहीं आबाद है कोई
धरा का देवता करता,है व्यापार लाशों का।

©पंकज प्रियम

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