Tuesday, July 2, 2019

592.बरसात


शीर्षक-बरसात
मुक्तक माला
विधाता छंद
1222 1222, 1222 1222
1
धरा की देख बैचेनी,.....पवन सौगात ले लाया
तपी थी धूप में धरती,.. गगन बरसात ले आया।
घटा घनघोर है छाई,....लगे पागल हुआ बादल-
सजाकर बूँद बारिश की, चमन बारात ले आया।।
2
तड़पती धूप में धरती,.....परेशां घूमता बादल,
हुई बैचेन वसुधा जब....हमेशा झूमता बादल।
पवन को छेड़ के हरदम, घटा घनघोर कर देता-
गगन से बूँद बरसा कर, धरा को चूमता बादल।।
धरा से हो मिलन उसका, सदा हालात ले आया।
धरा की....।
3
फ़ुहारों ने जमीं चूमी,.... हुई पुलकित धरा सारी,
बहारों को ख़िलाकर के, ..हुई पुष्पित धरा सारी।
खिले हैं बाग वन-उपवन, लगे ज्यूँ गात  में उबटन-
नयन मदिरा लगे दरिया, लगे कल्पित धरा सारी।।

4
उमड़ती देख नदिया ये, पहाड़ों से उतर कर के,
जमीं को नापती सारी, चली कैसे सँवर कर के।
उठा है ज्वार सागर में, उसे खुद में समाने को-
उसे आगोश में लेकर, करेगा प्यार जी भर के।
5
बदन को चूम कर देखो, पवन ने आग लगवाई
विरह की वेदना जागी, पिया की याद है आयी।
पिया परदेश में बैठे, प्रिया का दिल कहाँ समझे-
चले आओ सजन तुम भी,अरे बरसात है आयी।।
6
घटा सावन घनेरी है, .......अँधेरी रात कजरारी
चमक बिजुरी कटारी ने, जिया में घात है मारी।
विरह की आग में जलती, तपन की रात ना ढलती-
कटे कैसे अकेले में,........भरी बरसात ये सारी।।
7
बढ़ा जो खेत में पानी, खिली सूरत किसानों की,
तभी तो झूम के नाची, बुझी हसरत किसानों की।
लिया था कर्ज़ खेतों पे, बड़ा ये बोझ था दिल पे-
हुई बरसात तो देखो, जगी चाहत किसानों की।।
8
फ़टी वसुधा पड़ी सूखी...नयन जज़्बात ले आया,
गिराकर बूँद धरती पर,...जलद सौगात ले आया।
मिलन अम्बर धरा का ये,नया क्या गुल खिलाएगी-
सृजन का बीज बोने का, गगन बरसात ले आया।।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

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